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‘भारत की स्वतंत्रता और रॉयल नेवी म्यूटिनी विद्रोह’

भारत की स्वतंत्रता और रॉयल नेवी म्यूटिनी विद्रोह 1946 (मुंबई म्यूटिनी) भारत को स्वतंत्रता ‘ना खडग ना ढाल’ पर चरखे से मिली है, ऐसा हमें सिखाया जाता है, लेकिन यह पूरा सत्य नहीं है। यह एक अधूरी बात है। एक बड़े षडयंत्र के साथ हमें विनाश (र्डीर्लींशीीं) करने के लिए यह सिखाया गया है। आज मैं आपको रॉयल नेवी म्यूटिनी विद्रोह के बारे में बताऊंगा। यह बात है मुंबई में फरवरी 1946 कि कचखड तलवार नाम के युद्धपोत पर भारतीय अधिकारी व नौसेना शिपाइयों ने उनके कमांडर एफ. एम. किंग के सामने कुछ विनतियां कीं...! 
1. अच्छा खाना मिलना चाहिए।
2. काम करते वक्त उनके साथ सम्मानपूर्वक अच्छा व्यावहार करना।
3. समान वेतन मिलना चाहिये।
4. इंफाल के युद्ध में पकड़े गये आजाद हिन्द सेना के भारतीय सैनिकों को रिहा करना चाहिये। लाल किले पर होने वाले देशद्रोह मुकदमे से आजाद हिंद सेना के कर्नल डिल्लन, कर्नल सैगल, मेजर जनरल शहनवाज को रिहा करें।
5. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इंडोनेशिया में फंसे भारतीयों को वापस लायें, लेकिन  जहाज कमांडर एफ. एम. किंग ने भारतीय अधिकारी और शिपाई लोगों को उनकी नस्ल के ऊपर भद्दी गालियां देकर संबोधित कर अपमानित किया। इससे भारतीय अधिकारी, भारतीय नौसेना शिपाई और भी भड़क गए और उन्होंने जहाज पर विद्रोह कर दिया। यह चिंगारी कराची बंदरगाह, कलकत्ता बंदरगाह और बाकी बंदरगाहों पर फैल गयी। ब्रिटिश रॉयल आर्मी, ब्रिटिश सत्ता के लिए एक अभिमान की, ताकत की बात थी और इसी के बलबूते पर ब्रिटिश सत्ता पूरे एशिया को सम्भाल रही थी. यह विद्रोह जहाज पर और बोम्बे में 6 घंटे तक चला। अधिकृत जानकारी से आठ ब्रिटिश अधिकारी मारे गये, लेकिन अंदाजा है कि 500-700 ब्रिटिश अधिकारी पूरे बोम्बे रिजन में इस विद्रोह में मारे गये थे। इसके परिणामस्वरूप भारत के तत्कालीन जनरल ओरचिन लेग ने ब्रिटिश पार्लियामेंट को टेलीग्राम किया कि अभी हमारे पास भारत में दो ही रास्ते हैं, या तो हम भारत को स्वतंत्र करें या सारे ब्रिटिश अधिकारी भारत में मारे जायें। इस विद्रोह के दमन में 200-300 भारतीय मजदूर मारे गये। कई भारतीय अधिकारी और शिपाइयों ने इसमें बलिदान दिया। ये रॉयल नेवी म्यूटिनी, रॉयल नेवी विद्रोह, बॉम्बे म्यूटिनी ब्रिटिश साम्राज्य के किले को नष्ट करने में आखिरी कील साबित हुई।
-लेखक : श्री राहुल गोरवाडकर 
मोबा. : 9890144570

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