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पुणे मनपा शिक्षण मंडल के इतिहास में पहली बार हुआ इस तरह का कार्यक्रम : डॉ. मंगेश बोराटे

35 साल के बाद पुणे महानगरपालिका के सानेगुरुजी प्राथमिक विद्यालय स्कूल क्रमांक 32 में आयोजित किया गया पूर्व छात्रों का स्नेह समारोह : समारोह में किया गया गुरुजनों का सम्मान
हड़पसर, फरवरी (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज़ नेटवर्क)
‘अध्यक्ष महाशय पूज्य गुरुजनवर्ग’ वाक्य को याद रखने का कारण यह है कि पैंतीस साल बाद, हम पूर्व छात्रों ने स्नेह समारोह व हमारे गुरुजनों का सम्मान समारोह हमारे विद्यालय में यानी हड़पसर स्थित पुणे महानगरपालिका के सानेगुरुजी प्राथमिक विद्यालय स्कूल क्रमांक 32 में आयोजित किया गया था। वर्ष 1984 में प्रवेश लेनेवाले हम भूतपूर्व छात्र एवं हमारे शिक्षकों का सम्मान समारोह गुरुवार 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन विद्यालय में आयोजित किया गया।
मित्र परिवार पिछले दो महीने से कार्यक्रम की तैयारी कर रहा था, लेकिन यह बीज बोया गया हमारे सहपाठी योगेश अवचरे ने, व्हॉटसएप ग्रुप तैैयार करके। उसके बाद दूसरेे सहपाठी संतोष शिंदे ने स्नेह समारोह की संकल्पना रखी। फिर हमारी मुलाकातें शुरू हुईं, व्यक्तिगत रूप से बैठक कर कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने पर चर्चा की जा रही थी। पुरानी यादों को ताजा किया गया। जो दोस्त संपर्क में नहीं थे, उनका पता लगाया गया साथ ही श्री काटक सर की मदद से उन्होंने उन सभी शिक्षकों से संपर्क किया जो उस समय पढ़ा रहे थे। 55-60 पूर्व छात्रों ने तैयारी शुरू कर दी और यूनिफॉर्म में स्कूल जाने का फैसला किया। पूर्व छात्रों द्वारा पाठ्यक्रम के अतिरिक्त ज्ञानवर्धक पुस्तकें विद्यालय को उपलब्ध कराना व अब स्कूल में पढ़नेवाले छात्रों को स्कूल की सामग्री की देने का निर्णय लिया गया। 
पहली दो मीटिंग मेरी ओपीडी में  हुई थीं, इसके बाद की सभी बैठकें स्कूल में हुईं। आपस में मिलने का अवर्णनीय आनंद था। हर बैठक में, मुद्दों के खत्म होने से पहले, कोई एक पुराना किस्सा या स्मृति सुनाता था और फिर एक घंटा उस चर्चा में कैसे बीत जाता था, यह समझ नहीं आता। बापू ने सारी जिम्मेदारी उठाई थी जैसे कि महानगरपालिका शिक्षण मंडल से अनुमति प्राप्त करना, सभी शिक्षकों से संपर्क करना, नया दोस्त ढूँढकर मिलने पर उसे संपर्क करके ग्रुप में शामिल करना। यह निर्णय लिया गया कि सभी के लिए एक समान यूनिफॉर्म होगी। उसके लिए पुणे में होलसेलर ढूंढकर सबके नाप के हिसाब से कपड़े तैयार करना, स्कूल पुस्तक प्रकाशकों से अंतिम सूची को फाइनल करना। हमारे मित्र अभय कुलकर्णी की पहचान द्वारा बापू ने हमारे मित्र बंडू की मदद से छात्रों को रियायती दरों पर स्टेशनरी किट, किताबें, ड्रेस लाए। डिजाइनर और साइनेज के व्यवसाय में होने के कारण बापू ने अकेले ही कार्यक्रम पत्रिका, हमारे स्कूल का लोगो, शिक्षकों को स्कूल में देने के लिए स्मृतिचिन्ह तैयार किए। कार्यक्रम का आयोजन वर्तमान प्राचार्य एवं गणतंत्र दिवस का नियोजन करनेवाले शिक्षकों के समन्वय से किया गया।
गुरुवार 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन हम सभी छात्र-छात्राएं अपने-अपने घरों से सुबह 7 बजे स्कूल यूनिफॉर्म सफेद शर्ट, खाकी पैंट और गांधी टोपी पहनकर स्कूल में एकत्रित हुए। उस समय महानगरपालिका स्कूल का बैच और राष्ट्रीय ध्वज पॉकेट में लगाकर हम भूतपूर्व छात्र वर्तमान छात्रों के साथ लाइन में खड़े थे। ध्वजारोहण, संचलन और सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। हम दोस्तों के साथ इस दिन का आनंद ले रहे थे। जब मैं छात्र था उस विद्यालय में जहां मैंने ध्वज को सलामी दी थी, वहां के तत्कालीन मुख्याध्यापक श्री पोटे सर के साथ झंडा फहराने का अवसर मिला तो बहुत खुशी हुई। हमारे सहपाठी प्रीतम तिखे और मैंने छात्रों की ओर से मनोगत व्यक्त किया। गुरुवार की प्रार्थना ‘खरा तो एकची धर्म जगाला प्रेम अर्पावे’ यह प्रार्थना हमें उस समय मंच से निर्देश देनेवाले संतोष शिंदे व दीनानाथ दंडवते के पीछे एक सुर में सभी ने गाया। हमारी ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को नगद पुरस्कार दिए गए।
योजनानुसार स्कूल क्रमांक 32 (लड़कों का), स्कूल क्रमांक 45 (लड़कियों का) और उर्दू स्कूल के मुख्याध्यापकों को किताबों का सेट दिया गया, इसका संयुक्त मूल्य करीब 50-51 हजार रुपए था। गणतंत्र दिवस के अवसर पर विद्यालय को हमारे भारतीय संविधान की एक प्रति भेंट दी गई। सेवारत शिक्षकों, सेवानिवृत्त शिक्षकों और पूर्व छात्रों के बीच अनौपचारिक बातचीत हुई फिर हमारी क्लास भर गई। 1991 में उस समय जो सातवीं कक्षा के क्लास टीचर भिसे गुरुजी ने जैसे ही कक्षा में प्रवेश किया, हमने एक साथ नमस्ते सर का नारा लगाया। भिसे गुरुजी ने हमारी उपस्थिति ली। उपस्थिति देने के दौरान प्रत्येक छात्र ने संक्षिप्त परिचय दिया। श्री कोल्हे ने अंग्रेजी की क्लास लेते हुए अंग्रेजी व्याकरण का पुनरावलोकन किया। मजेदार सवाल-जवाब ने माहौल को चुलबुला बना दिया। तत्पश्चात शिक्षिका अनुराधा खरे ने ‘आई म्हणोनी कोणी आईस हाक मारी’ यह कवि यशवंत की कविता का अर्थ समझाया और कुछ पंक्तियाँ गायी गईं। शिक्षिका खरे व झगडे ने विभिन्न कविताओं का समूह गीतों से परिचित कराया। हमारे कुछ दोस्तों ने मजेदार यादें साझा कीं। उन सभी यादों को ताजा किया और शिक्षकों के प्रति आभार और सम्मान व्यक्त किया। सभी गुरुजनों को शॉल, गुलाब, श्रीफल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इसके बाद उस समय के मुख्याध्यापक श्री विजयानंद पोटे, श्री जयसिंग भिसे, श्री किसन कोल्हे, श्री मोमीन सर, श्री मारुति काटकसर व शामला तोडकर ने अपने मनोगत व्यक्त किये। शिक्षकों के साथ अनुराधा खरे, अंजलि जाधव, श्री बारकू शिंदे गुरुजी, श्री मुरलीधर आबनावे गुरूजी, श्री बबन आहेर सर व श्री भिमाजी बनकर सर भी उपस्थित थे। मार्गदर्शन करते हुए शिक्षकों ने बताया कि उस समय विद्यार्थियों को सद्बुद्धि के लिए दंड दिया जाता था, उन्हें सलाह दी जाती थी कि वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें, उनके दोषों और दुर्गुणों को दूर करने का प्रयास करें। इस स्नेह समारोह के आयोजन के लिए सभी ने हमारी सराहना की। इस तरह की गतिविधि पहली बार किसी महानगरपालिका स्कूल में की गई है। कार्यक्रम का सूत्र-संचालन पूर्व विद्यार्थी श्री संतोष बापू शिंदे ने किया। यह जानकारी डॉ. मंगेश बोराटे द्वारा दी गई है। 


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