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नारी की बदलती जिंदगी

जब जन्मी बच्ची कोसते थे रिश्तेदार,
कहीं नम होती अँखियाँ थीं गमसार!

लाड़ प्यार नहीं होता कभी डाँट मार,
शिक्षा नहीं होती बच्ची को मानते भार!

बोझ समझ घर की देते थे दुत्कार,
चुल्हा चौका करने में जिंदगी गुजार!

शादी ब्याह करके समझे नौका पार,
ससुराल में जाते हुए कष्ट अपार!

सुख कहीं नहीं सहो केवल धिक्कार,
वंश का दीपक जनो ताने कई बार!

जब सावित्री के कारण हुई पढ़ा़ई,
मिली दृष्टि नयी मिलने लगी बधाई!

माता-पिता की समझ में ये बात आई,
खोले बंधन सदियों के दे दी दुहाई!

पिंजड़े से उड़ते छूने लगी ऊँचाई,
गगन खुला आकांक्षाओं की उगवाई!

व्यापार, नौकरी, व्यवसाय में उतरी,
संशोधक, अध्यापन, वकीली, डॉक्टरी!

हवाई जहाज उड़ाती बल में खरी,
अंतरिक्ष में भी गयी सेना में प्रहरी!

अछूत नहीं अब कोई क्षेत्र नारी को,
विदूषी तैयार खेलने नयी पारी को!



श्री बाबू फिलीप डिसोजा
हिमगौरी बिल्डिंग 21, सेक्टर21, स्कीम 10, 
यमुनानगर, निगडी, पुणे-411044
मोबा. : 9890567468

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