क्या दो मुट्ठी अनाज के लिये जी रहा है देश ?
क्या सारी समृद्धि के हकदार हैं कुछ ही विशेष ??
क्या बलिदानियों ने देखा था ऐसे भारत का सपना ?
क्या आँखों देखे मक्खी निगलने को मजबूर है देश अपना ??
लोकतंत्र की धज्जियाँ सरेआम उड़ाई जा रही !
जन जन के मन में बसे नेता की आवाज़ दबाई जा रही !!
पहले लगे हुए थे ये जनसमर्पित नेता को पप्पू साबित करने में !
भारत जोड़ो ने इस चाल को मजबूर किया ख़ुदकुशी कर मरने पे !!
अब जब सीधे प्रश्न खड़े किये गये संसद में जनहित के !
संसद से बाहर कर खुलेआम गीत गा लिये स्वहित के !!
सर्वोच्च ने लेना चाहिये इन घटनाक्रमों का स्व संज्ञान !
पत्रकारों ने भी म्यान से बाहर निकाल लेनी चाहिये कलम की तलवार !!
बुद्धिजीवियों ने भी ‘डरो मत’ का करना चाहिये अनुसरण !
ज़िल्लती ज़िंदगी से अच्छा, सच का साथ, चाहे हो जाये मरण !!
विपक्षी नेताओं ने अपने अस्तित्व की करनी चाहिये फ़िक्र !
यदि राष्ट्रीय नेता के साथ होता है तो क्षेत्रीय का तो बचेगा भी न ज़िक्र !!
आओ आज हम सभी झांकें अपने अपने अन्तर्मन में !
ताकि दो मुट्ठी अनाज के लिये जीने का माहौल न बने हम सबके जीवन में !!

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