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ज़हर में घुलती जिंदगी और तेजी से बिगड़ता स्वास्थ्य

07 अप्रैल विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष
लेखक- डॉ. प्रितम भि. गेडाम
मोबाइल व्हाट्सएप नं. 08237417041 

आज हम जिस आधुनिकता का दम भरते हैं और जिस दमघोटू माहौल में जी रहे हैं, वह वातावरण धीमे जहर की भांति हमारे शरीर को कमजोर करके गंभीर बीमारियों से मार रहा है। धीमा जहर से तात्पर्य प्रदूषण, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, मिलावटखोरी, नैसर्गिक संसाधनों का अतिदोहन, सिकुड़ते वन क्षेत्र, वाहन व यांत्रिक उपकरणों का अतिउपयोग, नशाखोरी, शोर, प्लास्टिक व घातक रसायनों का बढ़ता उपयोग, ई-कचरा, मेडिकल कचरा, अशुद्धता जैसी समस्याएं से हैं, जो वातावरण को दूषित कर स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं उत्पन्न करते हैं। सीधे तौर पर कोई हम पर हमला करे या नुकसान पहुंचाए तो हम उसका कड़ा विरोध करते हैं, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से अर्थात मिलावटखोरी या प्रदूषण से कोई हमें जान से भी मारे तो भी अधिकतर हम चुपचाप सहते हैं, अप्रत्यक्ष रूप में प्रदूषण का जहर घातक बीमारियों को निर्मित करके हमें मारता है।
सुदृढ़ स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, प्रत्येक मानव को बेहतर उपचार तक पहुंच बनाने और सम्पूर्ण विश्व में स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटकर स्वास्थ्य कल्याण की योजना को प्रोत्साहन देने के लिए 7 अप्रैल 1948 को विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई। इस साल 2023 को इसे 75 साल पूरे हो रहे हैं। इसी दिवस पर विश्व स्वास्थ्य दिवस पूरी दुनिया में स्वास्थ्य-सुविधा व जागरूकता के रूप में मनाया जाता है, इस वर्ष की थीम सभी के लिए स्वास्थ्य यह है। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ, व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुसार :-  घरेलू बजट का 10% या उससे अधिक स्वास्थ्य पर खर्च करने के कारण दुनियाभर में लगभग 930 मिलियन लोगों के गरीबी में गिरने का खतरा है। उद्योग, परिवहन, कोयला बिजली संयंत्र और घरेलू ठोस ईंधन का उपयोग वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता हैं। कम और मध्यम आय वाले देशों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेपों को बढ़ाने से 2030 तक 60 मिलियन लोगों की जान बचाई जा सकती है और साथ ही औसत जीवन प्रत्याशा 3.7 साल तक बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए 370 अरब डॉलर के अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता है।
दूषित हवा छीन रही है सांसें :- हम जिस हवा में सांस लेते हैं वह खतरनाक रूप से प्रदूषित हो रही है, दस में से नौ लोग अब प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, जिसके कारण हर साल 7 मिलियन लोगों की असमय मौत होती है। वायु प्रदूषण से स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और हृदय रोग होने से कुल मौतों में से एक तिहाई मौतें होती हैं। घरेलू वायु प्रदूषण एक वर्ष में 4 मिलियन लोगों को मारता है। दुनिया भर में, 5 से 18 वर्ष की आयु के 14% बच्चों को वायु प्रदूषण से अस्थमा है। हर साल 5 वर्ष से कम उम्र के 543000 बच्चे वायु प्रदूषण से जुड़ी सांस की बीमारी से जान गंवाते हैं। द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, 2019 में भारत में प्रदूषण के कारण 2.3 मिलियन से अधिक अकाल मृत्यु हुई। अकेले वायु प्रदूषण के कारण लगभग 1.6 मिलियन मौतें हुईं, और 500,000 से अधिक जल प्रदूषण के कारण हुईं। प्रदूषित वातावरण का सबसे बुरा प्रभाव निम्न वर्ग पर पड़ता है क्योंकि वे बेहतर जीवन स्तर का खर्च नहीं उठा सकते जिसके कारण उनको स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स अनुसार :- भारत आज दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है। वायु प्रदूषण वैश्विक जीवन प्रत्याशा को लगभग 2.2 वर्ष कम कर देता है एवं औसत भारतीय जीवन प्रत्याशा को 6.3 वर्ष कम कर देता है, देश के कुछ क्षेत्रों में औसत से कहीं अधिक खराब स्थिति है, ऐसे क्षेत्र में आयु 10 साल से कम हो जाती है। प्रत्यक्ष सिगरेट के धुएं से लगभग 1.9 वर्ष की वैश्विक औसत जीवन प्रत्याशा में कमी आती है। वायु प्रदूषण के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित किये गए मानक स्तर पर भारत देश खरा नहीं उतरता है, देश में बहुत प्रदूषण है।
भारत का लगभग 70% सतही जल मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त है। हर दिन, लगभग 40 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल नदियों और जल के अन्य निकायों में प्रवेश करता है। बढ़ते शहरीकरण से जल निकाय भी जहरीले होते जा रहे हैं। कंप्यूटर, मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स के उपयोग के कारण तेजी से ई-कचरे की मात्रा विश्व स्तर पर लगातार बढ़ रही है। ग्लोबल ई-वेस्ट स्टैटिस्टिक्स पार्टनरशिप (जीईएसपी) के अनुसार, 2019 तक पिछले पांच वर्षों में इसमें 21% की वृद्धि हुई। अवर वर्ल्ड इन डेटा वेबसाइट पर हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2015 से 2020 तक 6,840,000 हेक्टेयर जंगल खो दिया है, 98 देशों में भारत दूसरे स्थान पर है।
बढ़ती मिलावटखोरी :- 2021-22 में खाद्य नियामक ने 144,345 नमूनों का विश्लेषण किया, जिनमें से 32,934 एफएसएस अधिनियम, 2006 और विनियमों के तहत निर्धारित मानकों का उल्लंघन करते पाए गए। मिलावटी खाद्य जहरीला होता है यह स्वास्थ्य को प्रभावित कर मनुष्य के समुचित विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से वंचित करता है। सबसे बुरी बात यह है कि कुछ मिलावटी खाद्य पदार्थ तो दर्दनाक मौत देनेवाली बीमारियों के जनक होते हैं। चिकित्सा विज्ञान की एक पत्रिका के अनुसार दूषित भोजन और पानी के सेवन से भारत में हर साल लगभग 2 मिलियन मौतें होती हैं।
आज दूषित हवा, पानी, खाना अर्थात जीवन विकास के लिए सबसे आवश्यक चीजें ही ख़राब स्तर की हों तो बेहतर स्वास्थ्य कैसे बना रहे, वर्तमान में इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हमारी जीवनशैली है। हमारी चटोरी जुबान स्वास्थ्य के लिए बेहतर खाद्य पदार्थों को नकारकर केवल स्वाद के हिसाब से खाद्य पदार्थों का चयन करती है। वसा, पाचन में भारी, मसालेदार, तला, मीठा, नमकीन ऐसे खाद्य पदार्थ की मांग अधिक है। आज की पीढ़ी को तो जंक फूड, फ़ास्ट फूड जैसा बाहरी खाना ज्यादा पसंद आता है, इसलिए अब स्ट्रीट फूड का चलन बहुत बढ़ गया है। सबको तैयार उत्पाद चाहिए, घर पर मेहनत नहीं। जीवनशैली के हिसाब से अब जानलेवा घातक बीमारियां हमें आसानी से जकड़ती है। आज किसी भी उम्र में कोई भी कभी भी बीमारी का शिकार होकर अपनी जान गंवाता है। कभी इस समस्या पर गौर किया है कि ऐसा क्यों हो रहा है? इसका मुख्य कारण है जहरीला वातावरण और हमारी अनभिज्ञता। आधुनिकता ने दूसरों पर निर्भरता बढ़ायी है, यांत्रिक संसाधन के बगैर आज हम जी नहीं सकते।
भोजन बनाने के लिए आवश्यक ज्यादा से ज्यादा पदार्थ पैकेजिंगवाली चीजें हम बाहर से ही खरीदना पसंद करते हैं, जबकि इन चीजों को बनाते समय अनेक प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है, जिसके कारण उसमें बहुत-से रसायन मिलते हैं, जो उस वस्तु के मूल पोषकतत्वों को कम कर शरीर को नुकसान भी पंहुचा सकते हैं। यहाँ तक कि अनाज भी पॉलिश किया हुआ खरीदते हैं क्योंकि वो अनाज दिखने में चमकदार दिखता है। आज हमारे जीवन में हर तरफ रसायन का उपयोग उच्चतम स्तर पर है। खेती में रसायन, फलों को पकाने और संग्रहण में रसायन। मिलावटखोरी तो इस कदर है कि किसी भी खाद्य उत्पाद के पूर्णत शुद्धता की गारंटी लेना मुश्किल है।
जागरूकता और सावधानी जरूरी :- डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों, पेय पदार्थों, फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड का सेवन कम करें। हाई-फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप, कृत्रिम मिठास, ट्रांस फैट, कृत्रिम खाद्य रंग, मोनोसोडियम ग्लूटामेट, सोडियम नाइट्रेट और सोडियम नाइट्राइट, पर्क्लोरेट, थैलेट, बिस्फेनोल्स, बीपीए, सोडियम बेंजोएट और पोटेशियम बेंजोएट, ब्यूटिलेटेड हाइड्रॉक्साइनिसोल जैसे पदार्थ विविध खाद्य पदार्थों में मिश्रित होते हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी नुकसानदेह हैं। ऐसी चीजों से हमेशा बचना चाहिए। चूंकि गर्मी प्लास्टिक से बीपीए और थैलेट को भोजन में लीक कर सकती है, इसलिए प्लास्टिक के कंटेनरों में भोजन या पेय पदार्थों को रखने से बचें। इसके अलावा प्लास्टिक को डिशवॉशर में डालने के बजाय हाथ से धोएं। प्लास्टिक की जगह कांच और स्टेनलेस स्टील का ज्यादा इस्तेमाल करें। खाने को छूने से पहले और बाद में अच्छी तरह से हाथ धोएं और सभी फलों और सब्जियों को अच्छी तरह से साफ करें।
सेहत ही संपत्ति है, सुदृढ़ स्वास्थ्य के लिए जागरूकता और जिम्मेदारी का अहसास बना रहना चाहिए। निरोगी काया के लिए सबसे उत्तम है कि दिखावे और आधुनिक जीवनशैली का साथ छोड़ें, आधुनिक विचारों से बने। सबसे मुख्य बात कि सरकारी नीति-नियमों, निर्देशों का कड़ाई से पालन हों। यांत्रिक साधनों का सीमित उपयोग करें। जंगल समृद्ध बनाना होगा, ताकि पर्यावरण का चक्र सुचारु रूप से चल सके, जिससे जल स्त्रोत समृद्ध होंगे, बेहतर ऑक्सीजन मिलेगा, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या में सुधार होगा, बेहतर फसल मिलेगी और प्राकृतिक आपदाएं व बीमारियों में कमी आएगी। वन ही जीवन का आधार है, वृक्षारोपण को लगातार बढ़ावा देना प्रत्येक मनुष्य की जिम्मेदारी है। 

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