बिहार की राजनीति ने एक नया मोड़ ले लिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही दसवीं बार पद पर आसीन हुए हैं, लेकिन असली सत्ता का केंद्र अब भाजपा के हाथ में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। पटना में हाल ही में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में 26 मंत्रियों ने शपथ ली, जिनमें 14 भाजपा और केवल 8 जेडीयू के प्रतिनिधि थे। यह संख्या-बदलाव सत्ता संतुलन में भाजपा की बढ़ती पकड़ को स्पष्ट करता है। मंच पर यह दृश्य साफ था कि अब सत्ता का असली असर भाजपा के हाथ में है।सबसे बड़ा संकेत तब मिला जब गृह मंत्रालय, जिसे नीतीश कुमार ने पिछले लगभग 20 साल तक स्वयं संभाला, अब भाजपा को सौंपा गया। डिप्टी मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी अब इस संवेदनशील विभाग के प्रमुख हैं। गृह मंत्रालय का नियंत्रण केवल पुलिस और कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक और प्रशासनिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है। अब राज्य में अपराध नियंत्रण, इंटेलिजेंस ऑपरेशन और सुरक्षा मामलों में भाजपा का सीधा प्रभाव रहेगा।सम्राट चौधरी का राजनीतिक व्यक्तित्व आक्रामक और निर्णायक माना जाता है। उनकी चुनौती यह होगी कि वे नीतीश कुमार द्वारा स्थापित सुशासन के मानकों को बनाए रखें। नीतीश ने अपने कार्यकाल में अपराध पर सख्ती, फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना और पुलिस को स्वतंत्र कार्रवाई की सुविधा देकर जनता में विश्वास पैदा किया था। अब यही जिम्मेदारी सम्राट चौधरी के कंधों पर आ गई है। जनता की अपेक्षाएँ ऊँची हैं और हर बड़ी घटना के बाद उनकी तुलना नीतीश के साथ होगी।
पुलिस प्रणाली और प्रशासनिक तालमेल भी उनकी परीक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। नीतीश के समय अफसरशाही को यह विश्वास था कि शीर्ष नेतृत्व सीधे कानून-व्यवस्था पर नजर रखता है। अब सम्राट चौधरी को यह भरोसा बनाए रखना होगा कि पुलिस निष्पक्ष और सशक्त है। बड़े मामलों में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई उनके नेतृत्व की परीक्षा होगी भाजपा की रणनीति स्पष्ट है। बिहार में गृह मंत्रालय की पकड़ के साथ पार्टी अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर रही है। सम्राट चौधरी की जातीय पृष्ठभूमि, उनकी कुशवाहा जाति, पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में रणनीतिक लाभ भी दे सकती है। बिहार में उनके प्रभाव का विस्तार उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल और 2029 लोकसभा चुनाव की रणनीति से जुड़ा है।जेडीयू और भाजपा के बीच सत्ता संतुलन अब स्पष्ट रूप से भाजपा की ओर झुका है। मंत्रिमंडल में भाजपा ने 9 नए चेहरों को शामिल किया और केवल 5 पुराने मंत्रियों को पुनः स्थान दिया। यह बदलाव केवल संख्या का नहीं बल्कि राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत है। जेडीयू को वित्त और सामान्य प्रशासन जैसे विभाग मिले हैं, जो नौकरशाही और राज्य नीति के संचालन में अहम हैं, लेकिन असली शक्ति अब गृह मंत्रालय में केंद्रित है।
आने वाली चुनौतियाँ सम्राट चौधरी के लिए बड़ी हैं। सबसे पहली चुनौती यह है कि जनता और मीडिया उनकी तुलना नीतीश कुमार से करेंगी। हर बड़ी घटना पर यह सवाल उठेगा कि अगर नीतीश होते तो क्या होता। दूसरी चुनौती पुलिस प्रणाली और अफसरशाही के भरोसे को बनाए रखना है। नीतीश ने अपने कार्यकाल में यह सुनिश्चित किया था कि पुलिस स्वतंत्र और निष्पक्ष कार्रवाई करे। अब सम्राट को यह भरोसा बनाए रखना होगा। तीसरी चुनौती भाजपा नेतृत्व की उम्मीदों पर खरा उतरना है। उनकी सफलता सीधे पार्टी की साख और भविष्य की रणनीतियों से जुड़ी होगी। चौथी चुनौती एनडीए में संतुलन बनाए रखना है। भाजपा, जेडीयू और अन्य सहयोगी दलों के बीच कानून-व्यवस्था के मामले कभी भी विवाद का कारण बन सकते हैं। पांचवीं चुनौती सोशल मीडिया और मीडिया दबाव है। हर घटना तुरंत वायरल होगी और राजनीतिक हथियार बन सकती है। छठी चुनौती नई पहचान बनाना है। नीतीश के मॉडल को अपनाते हुए सम्राट को अपनी अलग छवि बनानी होगी। सातवीं चुनौती जातीय और सामाजिक तनाव पर नियंत्रण रखना है। बिहार में छोटे विवाद बड़े संघर्ष में बदल सकते हैं और पुलिस निष्पक्ष दिखनी चाहिए। आठवीं चुनौती जनता के भरोसे को बनाए रखना है। सुशासन की छवि कायम रखना और हर फैसले का जनहित में होना उनकी जिम्मेदारी होगी।
केंद्र सरकार के दृष्टिकोण के अनुसार अवैध घुसपैठ और सीमांचल की सुरक्षा प्राथमिकता हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में अवैध घुसपैठ के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। यह जिम्मेदारी भी अब सम्राट चौधरी के कंधों पर है। सीमा पार की निगरानी, बीएसएफ और एनआईए के साथ तालमेल और विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया उनके कार्यकाल में लागू होगी।भाजपा का लक्ष्य साफ है। बिहार में कानून-व्यवस्था और सुरक्षा मामलों में केंद्र और राज्य का संयुक्त नियंत्रण स्थापित करना है। इसका मतलब है कि पुलिसिंग का स्वरूप बदलने वाला है। अपराध नियंत्रण में तेजी आएगी और राजनीतिक संतुलन मजबूत रहेगा। बुलडोजर और सख्त कार्रवाई के उदाहरण आने वाले समय में देखने को मिल सकते हैं।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार अब उत्तर प्रदेश की राह पर बढ़ सकता है। भाजपा का इरादा है कि केंद्र और राज्य के समन्वय से कानून-व्यवस्था के नए मानक स्थापित किए जाएँ। यह बदलाव केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि भाजपा की राजनीतिक शक्ति को मजबूत करने वाला कदम है।सम्राट चौधरी के लिए यह चुनौती है कि वे नीतीश के मॉडल को अपनाते हुए अपनी नेतृत्व छवि बनाएँ। जनता, मीडिया और राजनीतिक दल उनके हर कदम को मापेंगे। उनकी सफलता केवल गृह मंत्रालय तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरे बिहार में सुशासन, सामाजिक संतुलन और भाजपा की राजनीतिक साख में परिलक्षित होगी।
बिहार की राजनीति अब नए सिरे से परिभाषित हो रही है। गृह मंत्रालय भाजपा के नियंत्रण में आने से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि राज्य में अपराध नियंत्रण, जातीय-सामाजिक संतुलन और राजनीतिक शक्ति का नया समीकरण बन गया है। आने वाले समय में सम्राट चौधरी के नेतृत्व में प्रशासन और सियासत दोनों में नए मानक स्थापित होंगे। यदि वे इस चुनौती में सफल रहते हैं, तो बिहार में उनका प्रभाव नीतीश कुमार की छाया से आगे बढ़कर नए राजनीतिक समीकरण बनाएगा। उनकी भूमिका केवल गृह मंत्री की नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में स्थायी और निर्णायक शक्ति केंद्र के रूप में होगी। जनता की निगाहें अब उनके हर कदम पर हैं और उनके फैसले तय करेंगे कि बिहार का ‘सुशासन मॉडल’ कितना स्थायी और प्रभावशाली रहेगा।

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