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जिजीविषा

 डॉ. सत्येंद्र सिंह 
पुणे, महाराष्ट्र

वैज्ञानिकों का मत है कि करीब बीस अरब वर्ष पहले एक बड़े धमाके के साथ सृष्टि का वर्तमान क्रम चालू हुआ। तारों में सौर मंडल, उसमें पृथ्वी का जन्म, फिर उसका ठंडा होना, जल ऊपर आना और प्रारंभिक जीव वनस्पतियों का उद्गम। अनुमान यह है कि मछली से मानव तक कुल विकास गत 60 करोड़ वर्षों का है। इस विकास क्रम का भी अपना इतिहास है। कहते हैं कि प्रत्येक जीव जंतु का शरीर कोशिकाओं का गोदाम है और सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन तथा खाद्य अणु पहुंचाना और फालतू कचरा बाहर निकालना शरीर द्वारा होता है। व्यवस्था और प्रणाली भिन्न-भिन्न हैं परंतु मैलिक कार्य में कोई अंतर नहीं है। धरती पर प्रजनन सर्व प्रथम पानी में ही हुआ और उसके बाद गीली और फिर सूखी भूमि पर। ऑक्सीजन प्राप्त की जाती रही पर बाद में श्वसन प्रणाली भी विकसित हुई। अनुभूति इंद्रियां, हृदय, स्मृति सबका विकास हुआ परंतु इच्छा कैसे पैदा हुई और उसका विकास क्रम का पता नहीं। 
बिना इच्छा के तो कुछ होता ही नहीं परंतु जीने की इच्छा का क्या मतलब। जन्म हुआ है तो जीना ही पड़ेगा। फिर जीने की इच्छा हो या न हो, जीना ही होगा। परंतु फिर भी जीने की इच्छा है और वह सदा जीने की, अमर होने की। आध्यात्मिक मत है कि यह सृष्टि ब्रह्म से पैदा हुई, उसकी एक से अनेक होने की इच्छा हुईं और वह अनेक हो गया। क्यों हुआ यह कोई नहीं जानता। लाभ-हानि के हिसाब से अच्छी-बुरी इच्छा का वर्गीकरण भी हुआ। आज संसार में जो कुछ दिखाई देता है वह मानव इच्छा का ही परिणाम है। इच्छा प्रकट करने के लिए भाषा बनी, लिखना शुरू हुआ। विभिन्न ग्रंथ लिखे गए। सभ्यताएं बनीं, सिद्धांत बने। रहने के लिए महल बने। चलने के लिए सड़क बनीं और उन पर चलने के लिए अनेक वाहन। भूमि कम पड़ी तो जल और आसमान में भी वाहन चलने लगे। फिर भी इच्छा पूरी नहीं हुई। एक पैदा होती है और उसके पूरी होने पर दूसरी सामने आकर खड़ी हो जाती है।
आध्यात्मिक गुरु कहते हैं कि इच्छा त्यागो, जबकि यह कहना भी एक अच्छा है।  मृत्यु होने पर संसार से छुटकारा मिल जाता है परंतु फिर भी मुक्ति की इच्छा है। किससे मुक्ति की इच्छा? यह भी तो एक इच्छा है। औरों की सुधारने की इच्छा भी बड़ी प्रबल होती है। अमर होने की इस इच्छा ने कितने जीव, जंतुओं, मानवों का    विनाश किया है, इसका कोई हिसाब नहीं। उत्पत्ति सृष्टि है अपने आप होती है और विनाश किया जाता है जो इच्छा से होता है। अब जीने की इच्छा को अदम्य    साहस के रूप में भी देखा जाने लगा है। फिर भी इच्छा का उत्स (स्रोत) नहीं पता।  

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