राजनैतिक व्यंग्य-समागम
उसे बहुत पावर चाहिए थी। इतनी पावर, इतनी पावर, इतनी पावर कि पता नहीं कितनी पावर!
मिल गई साहब, उसे सारी पावर। इतनी पावर कि शरीर पावर से अकड़ गया। किसी तरह बैठे, तो खड़ा न हुआ जाए। खड़ा हो, तो बैठा न जाए। खड़ा हो, तो चला नहीं जाए। दो आदमी उठाकर चलाएँ, तो दो कदम बाद हाँफ जाए। न बैठाओ, तो रोने लग जाए। खाया न जाए,पीया न जाए। बोला न जाए। कुछ पहने तो पहना न जाए, कुछ उतारे, तो उतारा न जाए। थोड़ी अश्लील-सी बात है, मगर परिस्थिति का सही वर्णन करने के लिए बताना जरूरी भी है कि पाद आता-सा लगे, मगर आए नहीं। आगे आप कल्पना कर लीजिए। मुझसे और लिखा न जाए।
अब आपके पास पावर है या पावर नहीं है, तो भी करना तो सब पड़ता है। उठना, बैठना, चलना, फिरना, मटकना, गटकना, सब। न करो तो पावर चली जाए।आँखों के आगे अँधेरा छा जाए।
तो पावर को विचार आया कि डाक्टर को क्यों न दिखाया जाए। पावर बुलाए और डाक्टर न आए! डाक्टर कार से आया और कार के अंदर भी दौड़ता हुआ आया। इस तरह वह पल भर में पहुँच गया। उसने सब देखा, सुना और कहा कि मेडिकल साइंस में वह पावर नहीं है कि आपकी पावर का इलाज कर सके। आप बाइसवीं सदी में मेरे पास आते, तो मैं आपकी मदद कर सकता था। अभी नहीं। पावर को तुरंत असहायता का बोध हुआ। वह कोलैप्स होते-होते बची। बच गई तो उसने कहा, छोड़ो इनको। वैद्य जी को बुलाओ।
उन्होंने नाड़ी देख कर कहा, घबराने की कोई बात नहीं।आपके लिए मैंने एक बहुत ही स्पेशल और आप जैसा ही पावरफुल चूरण बनाया है। दिन में तीन बार लें। दसवें दिन आपको खुद फर्क महसूस होगा।
पावर ने कहा, वैद्य जी, आपने ठीक से सुना नहीं। खाना- पीना छोड़ो, मुझसे पादा तक नहीं जा रहा। आप पधारिए। उन्होंने आदेश दिया -- ऐ सुनो। वैद्य जी को गेट तक छोड़ आओ। इन्हें फीस मैंने दे दी है। वैद्य जी को तो कम से कम पाँच हजार मिलने की उम्मीद थी। बाहर आकर कहा, वह कार कहाँ है, जो मुझे लाई थी? बताया गया कि जरूरी काम से गई है। पाँच घंटे बाद शायद आ जाए। वेटिंग रूम में बैठिए। वैद्य जी ने कहा, मगर मुझे फौरन जाना है। मैं जाऊँ, तो अब जाऊँ, कैसे? मेरी जेब में तो फूटी कौड़ी भी नहीं है। आदेश हुआ कि इन्हें दो फूटी कौड़ियाँ दे दी जाएँ। इसे फीस मान कर वह पैदल ही रवाना हो गए।
अब पावर का आदेश हुआ कि मेरा विमान अमेरिका भेज कर फलाँ डाक्टर को तुरंत बुलाया जाए। गया विमान।डाक्टर ने कहा, मैं किसी दूसरे के विमान से कहीं नहीं जाता। अपने विमान से आऊँगा। एडवांस में पाँच करोड़ फीस इधर रख दो। फ्यूल भरवा दो। सेवन स्टार में कमरा बुक करवा दो।
सब इंतजाम संतोषजनक ढँग से कर दिया गया। डाक्टर ने सीधा, उलटा, बाँया, दायाँ, ऊपर, नीचे करवाया। उठाया, बैठाया, लेटाया। कभी नाक में, तो कभी आँख में, तो कभी कान में, तो कभी मुँह में कुछ घुसाया। कुछ आगे, कुछ पीछे भी घुसाया। उसके बाद कहा कि मैं तत्काल आपको न दवा दे सकता हूँ, न आपका आपरेशन कर सकता हूँ। मैं वापिस जाकर अपने प्रेसिडेंट से एप्वाइंटमेंट लूँगा। उनके पास बहुत ज्यादा पावर है।उनसे पूछूँगा कि दुनिया का यह सबसे पावरफुल इंसान सब कुछ मैनेज कैसे कर लेता है। फिर टेलीफोन पर आपका इलाज बताऊँगा।
पावर ने कहा कि वहाँ जाकर बात करने की क्या जरूरत!रुकिए, मैं अभी आपकी बात उससे करवाता हूँ। वह मेरा लंगोटिया है। हम एक ही स्कूल में पढ़े हैं। एक ही रूमाल से नाक पोंछते थे। अक्सर वह मेरा ही रूमाल होता था। लगाओ भाई फोन।कहना, सीधे साहेब बात करेंगे।
उधर से जवाब आया, प्रेसिडेंट साहब अभी बिजी हैं।वर्ल्ड क्राइसिस मैनेज करने मेंं लगे हैं।अभी तो खुद उनका फोन भी उनके पास आए, तो वह अपने से भी बात नहीं कर सकते। पहली फुरसत पाते ही आपसे बात करेंगे।अपना नंबर दीजिए प्लीज़। इन्होंने कहा, मेरे बीस नंबर हैं। नोट कीजिए। पहला फिर दूसरा, फिर तीसरा लगाइए। इस तरह ट्राय करते जाइए। 18वें पर भी नहीं लगे, तो 19 पर मैं जरूर मिल जाऊँगा और ग़लती से उस पर भी नहीं मिला, तो बीसवें पर मिल जाऊंगा। करो नोट।
उधर से कड़क आवाज़ आई। ओय मेरे पास इतना टाइम नहीं होता। कोई एक नंबर हो, तो बताओ। उस पर कुल एक बार आपको फोन किया जाएगा। उठाया तो ठीक वरना राम-राम।
इधर से भी ठसकती आवाज़ गई : आपको मालूम है आप किससे बात कर रही हैं? उधर से भी आवाज आई -- एक नंबर बता, नंबर। फिर इधर से कुछ मैं-मैं हुई,तो उधर से फोन काट दिया गया।
पावर क्या करती! बोली तो डाक्टर साहब, फिर आप ही वहां जाकर अप्वाइंटमेंट लेकर बता दीजिएगा, मगर जल्दी।
इधर डाक्टर साहब के फोन का कब से इंतज़ार किया जा रहा है। इधर से फोन मिलाया जाता है, तो उधर से जवाब आता है -- 'रांग नंबर'।
(कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं। जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)

0 टिप्पणियाँ