सुप्रसिद्ध निबंधकार बाबू गुलाबराय के अनुसार “ निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव और सजीवता के साथ ही आवश्यक संगति और सुसंबद्धता के साथ किया गया हो। ”
निबंध की उपर्युक्त परिभाषा की कसौटी पर अक्षरश: खरा उतरता एक निबंध संग्रह प्रकाश में आया है – “मुट्ठी भर अक्षत”, जिसके रचयिता है, जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद श्री नवीन चतुर्वेदी ।
इस संग्रह में कुल 27 निबंध हैं, जिन्हें हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं। पहली श्रेणी में ऐतिहासिक निबंध आते हैं । श्री चतुर्वेदी ने इतिहास का गहन अध्ययन-विश्लेषण किया है, लिहाजा उनके तीनों निबंध - महाकौशल क्षेत्र में 1857 की क्रांतियात्रा, स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता के बदलते आयाम : संदर्भ जबलपुर तथा स्वाधीनता समर और नमक सत्याग्रह - काफी खोजपूर्ण एवं दुर्लभ जानकारी से भरपूर हैं ।
दूसरी श्रेणी में वे साहित्यिक निबंध आते हैं, जो या तो कालजयी साहित्यकारों पर लिखे गए हैं या उनके संपूर्ण साहित्य के किसी एक पक्ष को उजागर करते हैं। इन निबंधों का अनुशीलन करने पर इस बात की पुष्टि हो जाती है कि लेखक ने कवि गंग, मैथिलीशरण गुप्त, पं. गंगा प्रसाद अग्निहोत्री, मुंशी प्रेमचंद, आल्हा, केदारनाथ सिंह, त्रिलोचन, सुभद्रा कुमारी चौहान, गोपाल शरण सिंह नेपाली तथा कवि मोहन अंबर पर कुछ लिखने से पूर्व उनको खूब पढ़ा है। लेखक ने भारतीय फ़िल्म संगीत का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते समय ए. आर. रहमान पर भी अपनी कलम चलाई है, तो रामेश्वर शुक्ल अंचल के साहित्य के विविध पहलुओं पर चार अध्ययनपरक एवं रोचक निबंध भी लिखे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जबलपुर में निवास करने के कारण लेखक को अंचल जी का भरपूर सानिध्य प्राप्त हुआ है।
साहित्यकारों के अतिरिक्त लेखक ने तीन महान हस्तियों- बाबू जयप्रकाश नारायण, स्वामी दयानंद सरस्वती एवं वीर सावरकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भी प्रकाश डाला है, तथापि यह कहकर कि “ सावरकर का जीवन परिचय देना इस आलेख का उद्देश्य नहीं है ”, लेखक ने सावरकर के जीवन से जुड़े बहुचर्चित, विवादास्पद एवं बहुप्रचारित प्रसंगों एवं पहलुओं से किनारा कर लिया है।
तीसरी श्रेणी में वे छह ललित निबंध आते हैं, जो इस संग्रह को बेहद पठनीय, संग्रहणीय एवं उपयोगी बनाते हैं। तेंदुआ गुर्राता है, मरू की पुकार, समय नदी है, नदी राग, एक क्षण रुकें, प्रेम तो पारस है, वे ललित निबंध है, जो गद्य काव्य के अप्रतिम नमूने हैं, जिनमें संस्मरणों की सुगंध है, अपनी माटी, अपनी संस्कृति की गंध है।
संग्रह की विशेषता इसके सटीक, आकर्षक, विषयानुकूल तथा उपयुक्त शीर्षक हैं। ‘तेंदुआ गुर्राता है’ शीर्षक से क्या आप इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि यह निबंध वन्य प्राणी संरक्षण से संबंधित नहीं है ? निबंध पढ़ने पर पता चलता है कि यह तो हमारी सभ्यता और संस्कृति की पड़ताल करता एक महत्वपूर्ण निबंध है। कुछ शीर्षक तो लाजवाब है, जैसे स्वाभिमान की दीपशिखा : कवि गंग, मांसल प्रेम की शुचिता, नारी की एकनिष्ठता के आलोक वृत्त, त्रासदी के चरम बिंदुओं का सूक्ष्मांकन आदि।
श्री चतुर्वेदी की भाषा सुगठित, परिमार्जित, प्रांजल, प्रवहमान एवं निर्दोष है। भाषा सौष्ठव के कुछ नमूने देखिए-
“संस्मरणों में उनकी सौंदर्य दृष्टि शब्दों में इंद्रधनुषी रंग भरकर अभिव्यक्ति के विस्तृत क्षितिज छू पाने में समर्थ हुई है। ” (पृ.61)
“केदार जी की कविताओं में भारतीय जीवन पद्धति, जीवन मूल्य और जीवेषणा अपनी पूरी शक्तिमत्ता के साथ उदघोषित होती है। आधुनिक जीवन की लंपटता और सामंती प्रवृत्तियों के सह अस्तित्व में फलती-फूलती दैहिक और मानसिक क्रूरताओं के विरुद्ध चुप रह जाना उनकी दृष्टि में अपराध है।” ( पृ.85)
“खिलौने वह माध्यम है, जो बच्चों के आकाशचारी मन को कल्पनाओं के नवल वितान रचने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं। ” ( पृ.94)
“भाषा के बिना संस्कृति अपंग हो जाती है और संस्कृति के बिना भाषा दृष्टिहीन । ” ( पृ.124)
“ सुख की नदी भी दुख के किसी उन्नत पर्वत शिखर पर जमी वेदना के धनीभूत हिमनद से ही पिघल कर अवतरित होती है। ” ( पृ.134)
इस निबंध संग्रह का मुकुटमणि है, प्रेम तो पारस है । मेरी दृष्टि में यह निबंध इस संग्रह की आत्मा है, सर्वश्रेष्ठ निबंध है। प्रेम पर ओशो के पश्चात जबलपुर से ही एक सार्थक, सटीक, हृदयस्पर्शी तथा मन की गहराइयों में पैठ जाने वाला निबंध आया है।
श्री चतुर्वेदी की लेखन शैली अध्यापकीय है, जो 39 वर्षों के अध्यापन अनुभव के कारण स्वाभाविक भी है। इन निबंधों को पढ़ते समय मुझे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अशोक के फूल का स्मरण हो आया। इनमें से कुछ निबंध पाठ्य पुस्तकों में लिए जा सकते हैं, क्योंकि इनका लेखन करते समय इस बात को ध्यान में रखा गया है।
पुस्तक की साज- सज्जा, प्रस्तुतिकरण, मुद्रण संतोषजनक है। मुखपृष्ठ आकर्षक एवं विषयानुकूल है। कागज अच्छी गुणवत्ता का है, हालांकि पृष्ठ संख्या 52, 55, 64, 68, 80, 95, 113, 122, 133, 142, 156, 159, 162, 171, 172, 178 तथा 181 पर प्रूफ की भूलें खटकती है। पुस्तक का मूल्य कुछ अधिक रखा गया है।
पुस्तक समीक्षा- डॉ. विपिन पवार
• पुस्तक : मुट्ठी भर अक्षत (निबंध संग्रह)
• लेखक : श्री नवीन चतुर्वेदी
• कुल पृष्ठ : 182
• प्रकाशन वर्ष : 2024
• मूल्य : ₹ 300
• प्रकाशक : संकल्प प्रकाशन, ए-201, गली नंबर-4 बी , पार्ट-2, पहला पुस्ता, सोनिया विहार, दिल्ली 110090
• संपर्क : 9868425378



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