क्रिसमस, 25 दिसंबर के अवसर पर विशेष
-डॉ. विपिन पवार
शेवालेवाड़ी गाँव, पुणे (महाराष्ट्र)
मोबा. : 8850781397
इतिहास में इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि भगवान ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था, लेकिन पिछले 2024 वर्षों से संपूर्ण विश्व में भगवान ईसा मसीह के जन्म को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। ईसाई समुदाय के दोनों पंथ अर्थात प्रोटेस्टेंट एवं रोमन कैथोलिक सारी दुनिया में इसे धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन पूर्वी ऑर्थोडॉक्स गिरजाघर इसे जनवरी 6 को तथा आर्मेनियाई गिरजाघर इसे 19 जनवरी को मनाते हैं। इतिहास में सर्वप्रथम ई.स. 325 में कांस्टेंटाइन के समय में 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने का उल्लेख प्राप्त होता है। क्रिसमस दो शब्दों से मिलकर बना है, क्राइस्ट तथा मास, जिसका अर्थ है ईसा मसीह के जन्म दिवस को मनाने के लिए जनता द्वारा आयोजित धार्मिक उत्सव।
परंपरागत रूप से स्थापित इस तारीख, 25 दिसंबर, के पीछे कुछ तर्क भी दिए जाते हैं, जैसे मध्य पूर्व के देशों में नवीन वर्ष का प्रारंभ इसी अवधि में हुआ करता था, तो भगवान ईसा मसीह का जन्म एक नए युग का प्रारंभ है, इसी विचार को ध्यान में रखते हुए क्रिसमस इस तारीख को निश्चित किया गया होगा। दिसंबर महीने का अंत यानी कड़ाके की सर्दी का समय। इसके पश्चात रातें छोटी होती जाती हैं और दिन लंबे होते जाते हैं। अंधकार को पाप एवं प्रकाश को पुण्य के रूप में प्राय: समस्त धर्मग्रंथों में रुपायित किया गया है। अंधकार में टटोलने वाला मानव प्रकाश की बाट जोहता है। हमारी आंखों में अंधकार चुभता है। दुनिया के सारे पाप प्राय: अंधेरे में चलते हैं, लेकिन मनुष्य प्रकाश की प्रत्याशा में रहता है। शीत एवं अंधकार में रहने वाले मनुष्य के लिए सूर्य की गर्मी ईश्वरी वरदान के समान होती है। जनवरी माह में दिन बड़ा होता है, रात छोटी होती है। सूर्य के इस संक्रमण के मद्देनजर आदिमानव ने उत्सव मनाना प्रारंभ कर दिया हो, तो कोई आश्चर्य नहीं।
2024 वर्ष पूर्व संपूर्ण दुनिया में एक समाचार फैला कि दिव्य तेज युक्त एक बालक ने जन्म लिया है, यह प्रकाश का प्रतीक था। क्रिसमस प्रेम, क्षमा, शांति, दया, करुणा एवं भाईचारे का प्रतीक पर्व है। भगवान ईसा मसीह ने अपने जीवन भर मानव जाति से प्रेम किया। प्रेम का संदेश दिया। अपने विरोधियों, आलोचकों एवं यहाँ तक कि उन पर आक्रमण करने वाले रोमियों तक को क्षमा किया। दीन-दुखियों, कंगालों, दरिद्रों, कोढ़ियों, भिखारियों, रोगियों, अवसादग्रस्तों पर दया की तथा अपने करुणामय स्पर्श से उनके तन-मन की दुर्बलताओं को चंगा किया, यह कहते हुए कि पाप से घृणा करो, पापियों से नहीं, संपूर्ण विश्व को भाईचारे का संदेश दिया। ‘स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा हो और पृथ्वी पर शांति हो।’ ज्ञानेश्वर महाराज के पयासदान में भी यही प्रार्थना और कामना है। गुरुवाणी और हमारे समृद्ध हिंदी संत साहित्य में भी कमोबेश यही बात कही गई है।
एक बार भगवान ईसा मसीह से पूछा गया कि मानव इस भवसागर से पार होकर अपना उद्धार कैसे कर सकता है? तो ईसा मसीह ने जवाब दिया कि जिसके मन में प्रेम है, उसे किस बात का डर? यह बात हम गांधी जी के शब्दों में कहें तो, जिसका जीवन सत्य व प्रेम से लबालब भर जाए, समझ जाओ कि वह मुक्त हो गया, इस भवसागर से पार हो गया।
संपूर्ण विश्व में प्रेम, क्षमा, दया, करुणा एवं भाईचारे की भावना बलवती हो, यही क्रिसमस मनाने का उद्देश्य एवं इस पर्व की सार्थकता है।
(सन् 1967 में अमेरिका में प्रकाशित दी न्यू कॉन्पैक्ट बाइबल डिक्शनरी (पृष्ठ 108)


0 टिप्पणियाँ