पुणे, दिसंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
भारत में हिंदी भाषा का भविष्य उज्ज्वल है, बशर्ते अन्य भाषा-भाषियों पर इसे थोपा न जाए। मस्कत से पुणे आए संस्कृतिकर्मी टेकू वासवानी ने यह कहते हुए प्रतिपादित किया कि हिंदी भाषा के जरिए पूरे विश्व में काम किया जा सकता है। मस्कत में भी आम बोलचाल की भाषा हिंदी ही है। घरों-परिवारों के अलावा औपचारिक संस्थानों में भी हिंदी बोलने से कहीं कोई दिक्कत नहीं आती। अस्सी वर्षीय वासवानी ने 11 कन्याओं को गोद लिया है। उनमें से एक कन्या के विवाह के सिलसिले में वे भारत आए हुए हैं। गुरुवार को वैश्विक हिंदी परिवार तथा महाराष्ट्र राष्ट्र भाषा प्रचार समिति द्वारा आयोजित अनौपचारिक भाषा-भाषी सम्मेलन में वे मुख्य अतिथि थे।
शुक्रवार पेठ स्थित समिति कार्यालय में हुए इस आयोजन में उन्होंने बताया कि मस्कत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मंदिर और मस्जिद की दीवारें सटी हुई हैं। न वहाँ हिंदू होने से कोई खतरा है, न हिंदी बोलने से। विभिन्न भाषा-भाषियों ने अपने विचार रखते हुए मराठी-हिंदी, फारसी-उर्दू भाषा की स्थितियों पर विमर्श किया।
वर्ष 1978 से मस्कत में रह रहे वासवानी ने भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी है। उन्होंने कहा कि यदि यहाँ कि नागरिकता छोड़ दी, तो अपने ही देश में पराए हो जाएँगे। उनकी बात का समर्थन करते हुए नागपुर से आईं डॉ. भारती सुदामे ने मराठी भाषा में अभिव्यक्त होते हुए निर्वासित होने के दुःख पर क्षोभ जताया। उन्होंने कहा कि लिपि बदल सकती है पर भाषा जीवित रहना चाहिए।
छात्रा साराक्षी पुराणिक ने आज के युवाओं के बदलते भाषायी समीकरणों पर प्रकाश डाला। पुणे की मराठी-हिंदी कवयित्री अपर्णा कडसकर ने जानना चाहा कि सिंधी की अधिकृत लिपि कौन-सी है तो एस.पी. कॉलेज पुणे के डॉ. गोरख थोरात ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सिंधी समाज की स्थिति को मुख्य अतिथि से समझना चाहा।
समिति की ओर से अतिथियों का स्वागत डॉ. सदानंद महाजन ने किया। संचालन समिति के कार्याध्यक्ष डॉ. सुनील देवधर ने किया। आभार वैश्विक हिंदी परिवार की प्रांत संयोजक स्वरांगी साने ने माना।
भारत में हिंदी भाषा का भविष्य उज्ज्वल है, बशर्ते अन्य भाषा-भाषियों पर इसे थोपा न जाए। मस्कत से पुणे आए संस्कृतिकर्मी टेकू वासवानी ने यह कहते हुए प्रतिपादित किया कि हिंदी भाषा के जरिए पूरे विश्व में काम किया जा सकता है। मस्कत में भी आम बोलचाल की भाषा हिंदी ही है। घरों-परिवारों के अलावा औपचारिक संस्थानों में भी हिंदी बोलने से कहीं कोई दिक्कत नहीं आती। अस्सी वर्षीय वासवानी ने 11 कन्याओं को गोद लिया है। उनमें से एक कन्या के विवाह के सिलसिले में वे भारत आए हुए हैं। गुरुवार को वैश्विक हिंदी परिवार तथा महाराष्ट्र राष्ट्र भाषा प्रचार समिति द्वारा आयोजित अनौपचारिक भाषा-भाषी सम्मेलन में वे मुख्य अतिथि थे।
शुक्रवार पेठ स्थित समिति कार्यालय में हुए इस आयोजन में उन्होंने बताया कि मस्कत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मंदिर और मस्जिद की दीवारें सटी हुई हैं। न वहाँ हिंदू होने से कोई खतरा है, न हिंदी बोलने से। विभिन्न भाषा-भाषियों ने अपने विचार रखते हुए मराठी-हिंदी, फारसी-उर्दू भाषा की स्थितियों पर विमर्श किया।
वर्ष 1978 से मस्कत में रह रहे वासवानी ने भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी है। उन्होंने कहा कि यदि यहाँ कि नागरिकता छोड़ दी, तो अपने ही देश में पराए हो जाएँगे। उनकी बात का समर्थन करते हुए नागपुर से आईं डॉ. भारती सुदामे ने मराठी भाषा में अभिव्यक्त होते हुए निर्वासित होने के दुःख पर क्षोभ जताया। उन्होंने कहा कि लिपि बदल सकती है पर भाषा जीवित रहना चाहिए।
छात्रा साराक्षी पुराणिक ने आज के युवाओं के बदलते भाषायी समीकरणों पर प्रकाश डाला। पुणे की मराठी-हिंदी कवयित्री अपर्णा कडसकर ने जानना चाहा कि सिंधी की अधिकृत लिपि कौन-सी है तो एस.पी. कॉलेज पुणे के डॉ. गोरख थोरात ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सिंधी समाज की स्थिति को मुख्य अतिथि से समझना चाहा।
समिति की ओर से अतिथियों का स्वागत डॉ. सदानंद महाजन ने किया। संचालन समिति के कार्याध्यक्ष डॉ. सुनील देवधर ने किया। आभार वैश्विक हिंदी परिवार की प्रांत संयोजक स्वरांगी साने ने माना।

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