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‘पढ़ोगे तो बचोगे’ का मूलमंत्र दोहराकर संपन्न हुआ पुणे पुस्तक महोत्सव

महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी तथा ऑक्सफोर्ड आफ ईस्ट एवं भारत रत्न महामानव डॉ. बाबासाहब अंबेडकर, क्रांतिसूर्य महात्मा ज्योतिबा फुले एवं भारत में स्त्री शिक्षा का सूत्रपात करने वाली आदरणीया सावित्रीबाई फुले की कर्मभूमि पुणे में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, फर्ग्यूसन महाविद्यालय, पुणे महानगरपालिका एवं सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में 13 से 21 दिसंबर तक तीसरा ‘पुणे पुस्तक महोत्सव’ एवं 16 से 21 दिसंबर तक तीसरा ‘साहित्य महोत्सव’ संपन्न हुआ। मराठी में एक कहावत है कि ‘वाचाल तर वाचाल’ अर्थात पढ़ोगे तो बचोगे अर्थात... अज्ञान, अत्याचार, अनीति, अशिक्षा, विपन्नता, कुरीतियों, अंधविश्वास से बचकर भवसागर से पार हो जाओगे। 

पुणे में पुस्तक महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं होता, एक आत्मीय उत्सव होता है, जिसकी तैयारियां पर्याप्त समय पहले प्रारंभ हो जाती हैं। अचानक एक प्रात: पुणे महानगरपालिका ने अपने करदाताओं को एक संदेश दिया, जिसमें एक गूगल फॉर्म संलग्न था तथा यह निवेदन किया गया था कि आप अपनी पसंद की कोई भी एक पुस्तक पढ़ते समय फोटो खिंचवाएं और गूगल फॉर्म भरकर उसमें अपनी फोटो अपलोड कर दें। आम नागरिकों से बात करने पर यह पता चला कि नागरिकों ने जिस पुस्तक को पढ़ते हुए अपना फोटो अपलोड किया था, उस पुस्तक को पूरा पढ़ लिया कि कहीं हमसे उस पुस्तक के बारे में कुछ पूछ न लिया जाए, यह है पठन-पाठन की पुणेरी संस्कृति। बाद में पुस्तक महोत्सव की फोटो प्रदर्शनी में सैकड़ों नागरिकों के चित्र प्रदर्शित किए गए। महोत्सव में प्रतिदिन ‘पुस्तकवारी’ शीर्षक से एक अख़बार का प्रकाशन होता था। वारी को हिंदी में ‘तीर्थयात्रा’ कहा जा सकता है। इस महोत्सव में प्रदेश के प्रमुख राजनेताओं के अलावा तीनों भाषाओं के प्रमुख साहित्यकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। 
आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि नौ दिन नौ रात्रि के इस महा आयोजन में मराठी, हिंदी, अंग्रेजी तीनों भाषाओं के 800 स्टॉल्स लगाए गए थे। 9 दिनों में 30 लाख पुस्तकों की बिक्री हुई। 60 करोड़ रुपए रुपए का कारोबार हुआ और 15 लाख लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। महोत्सव का यह तीसरा वर्ष था। इस वर्ष हिंदी के कुछ अधिक स्टॉल्स दिखाई दिए, जो देश की राजभाषा के लिए एक शुभ संकेत है। पुणे का युवा यदि मॉल एवं पब में जाता है, तो पूरे 9 दिन पुस्तक महोत्सव में भी हाजिर रहता है और अपनी मातृभाषा के साहित्य की गहरी समझ रखता है।
आलेख एवं छाया- डॉ. विपिन पवार

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