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मेहनतकशों की आंखों के तारा डॉ. बाबा आढाव लुप्त हो गए : डॉ. गणेश राख

डॉ. बाबा आढाव ने हमें आत्म-सम्मान सिखाया। उन्होंने मेहनत व परिश्रम को प्रतिष्ठा व सम्मान का स्थान दिलाया। हमाल और मेहनतकश वर्ग डॉ. बाबा आढाव से बहुत प्रेम करते थे एवं बाबा भी उनसे प्रेम करते थे। बाबा इन सभी हमालों को अपने बच्चों की तरह मानते थे। डॉ. बाबा आढाव ने हमालों के लिए एक हमाल पंचायत का निर्माण किया। उन्होंने हमालों का एक हक का संगठन बनाया। उन्होंने उन्हें लड़ना सिखाया। उनकी लड़ाई धीरे-धीरे सफल होने लगी। पीठ पर      ढोनेवाला 100 किलो का बोरा धीरे-धीरे कम भारी होने लगा। साथ ही कुलियों की आमदनी भी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। काम छोड़ने के बाद कुलियों को रिटायरमेंट फंड भी मिलने लगा। इससे कुलियों को बुढ़ापे में कुछ सहारा मिलने लगा। इतना ही नहीं बाबा ने मेहनतकशों को संघर्ष करना सिखाया। एकजुट होकर मिलकर रहना सिखाया। साथ मिलकर आगे बढ़ना सिखाया। डॉ. बाबा आढ़ाव ने इन दोनों बातों का ध्यान रखा कि इस संघर्ष में दोनों (मेहनतकशों और व्यापारियों) में से किसी का नुकसान न हो और हमारी मांगें भी मान ली जाएं।
मेरा अपना गाँव करमाला ज़िला, सोलापुर है। उस समय करमाला तालुका सूखा-ग्रस्त तालुका के तौर पर मशहूर था। असल में पूरा सोलापुर ज़िला सूखा-ग्रस्त इलाका माना जाता था। इस वजह से, हमारे गांव और आस-पास के गांवों के साथ अन्य तालुका से बड़ी संख्या में लोग पुणे में स्थानांतरित हो गए। सन् 1984 में मेरे पिता अपने परिवार के साथ पुणे में आए। वे अनपढ़ होने के कारण उनके लिए कोई दूसरा काम ढूंढना मुमकिन नहीं था, इसलिए गांव के दूसरे लोगों की तरह उन्होंने भी गुलटेकड़ी, मार्केटयार्ड में अनाज मंडी में कुली का काम करना शुरू कर दिया। उस समय हमाल का काम करना कड़ी मेहनत और कठिन काम था। मेरे पिताजी को 100 किलो का बोरा पीठ पर ले जाना पड़ता था। लगभग सभी मेहनतकशों की पीठ इतनी ज़्यादा बोझ उठाने की वजह से काली हो गई थी। 
आज भले ही गुलटेकड़ी मार्केट में हमाल मेहनती हैं, लेकिन उसे एक प्रतिष्ठा है और जो लोग यह काम करते हैं वे स्वाभिमानी हैं। वे स़िर्फ खुद को दूसरों से आगे नहीं रखते। वे खामखां किसी के आगे पीछे नहीं घूमते हैं। वे कड़ी मेहनत करते हैं व स्वाभिमान के साथ जीते हैं। यह स्वाभिमान का जज्बा हमालों में डॉ.बाबा आढाव ने निर्माण किया। हमालों को आत्मसम्मान सिखाया। बाबा हमेशा अपने साथियों से कहते हैं कि जो काम तुम कर रहे हो, वह बहुत मेहनत का काम है। इसका मतलब यह नहीं है कि अगली पीढ़ी भी वही काम करे तो आप अपने बच्चों को सिखाएं और स़िर्फ सिखाएं ही नहीं बल्कि उनमें अच्छे संस्कार भी डालें। उन्हें ऐसा इंसान बनाएं जो दूसरे इंसानों के साथ इंसानों जैसा बर्ताव करे। 
सन् 1991 में जब मैंने दसवीं की पढ़ाई पूरी की और अच्छे नंबर लाए, तो बाबा अपने साथियों के साथ हमारी झोपड़ी में मेरा सम्मान करने के लिए आए। जिस जगह हम रहते थे उस जगह पर सभी हमाल रहते हैं। डॉ. बाबा आढाव हमारे घर आने के बाद हमारे क्षेत्र में एक फरिश्ते से मिलने का माहौल था।
3 जनवरी 2012 को जब हमने अपने छोटे से मेडिकेयर हॉस्पिटल में बेटी बचाओ जन आंदोलन शुरू किया, तो बाबा यह सुनकर इतने खुश हुए कि उन्होंने हमाल पंचायत की तरफ से मुझे सम्मानित किया और सम्मान के बाद उन्होंने कहा कि इस सम्मान से बहुत अभिभूत मत होना। आगे तुझे बहुत बड़ी लड़ाई लड़नी है। बाबा कई बार हमारे मेडिकेयर हॉस्पिटल आए। वह कभी-कभी फ़ोन करते या हमें मिलने के लिए बुलाते या मैं खुद उनसे मिलने जाता था और उन्हें बेटी बचाओ जन आंदोलन के बारे में जानकारी देता था। वह समय-समय पर हमें अमूल्य मार्गदर्कशन प्रदान करते थे। बाबा और सभी हमाल और मेरा शुरू से ही बहुत करीबी रिश्ता रहा है। हमाली शब्द मेरे लिए बहुत भावनात्मक है। असल में आज भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक हमाल का बेटा... डॉ. गणेश राख के नाम से जाना जाता है।
डॉ. बाबा आढाव ने कई लोगों की ज़िंदगी बदल दी। बाबा ने एक सभ्य व संस्कृति के प्रति जागरूक पीढ़ी बनाई जो बाबा के विचारों पर चलती है, कड़ी मेहनत करती है, पसीना बहाती है, लेकिन आत्म-सम्मान के साथ जीती है। बाबा आज हमारे बीच नहीं हैं। ऐसे महान मज़दूर नेता को दिल से श्रद्धांजलि!
- डॉ.गणेश राख 
प्रवर्तक /जनक : बेटी बचाओ 
जन आंदोलन एक सामाजिक क्रांति

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