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ऑक्सफोर्ड छात्र संघनेता रश्मि सामंत का अपमान

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का असली चेहरा सामने आया
यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। जब भी कोई भारतीय अपने डेमोक्रेटिक राइट के आधार पर अपनी बुद्धि, अपनी विसडम के आधार पर ब्रिटिश लोगों के सामने अपना, भारत का नाम ऊंचा करता है, उन सभी का ये अनुभव रहा है।
कर्नाटक के उडुपी की रहने वाली 24 वर्षीया रश्मि सामंत, जो अपने कॉलेज जीवन से छात्र संघ राजनीति में सक्रिय थीं। उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में एमएस के लिये दाखिला मिला। वहां दाखिला मिलते ही उन्हें वहां होने वाले छात्रसंघ के चुनावों की जानकारी मिली। रश्मि सामंत का झुकाव, जो शुरू से ही छात्र संघ राजनीति में था, उन्होंने अपना नामांकन भर दिया। रश्मि सामंत ने अपने अनुभव, विसडम, वकृत्व के बल पर तीन ब्रिटिश लड़कों को मात दी। उल्लेखनीय है कि रश्मि सामंत ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष निर्वाचित होकर इतिहास बनाया। अध्यक्ष पद के लिए रश्मि के पक्ष में 1,966 वोट आए, जो बाकी उम्मीदवारों से सबसे अधिक थे। इस साल ऑक्सफोर्ड के चुनाव में रिकॉर्ड 4,881 छात्रों ने वोट किया। बस एक लड़की ने तीन ब्रिटिश   लड़कों को मात देना, हाइपोक्रेट ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के लोगों को बुरा लग गया और ब्रिटिश लोगों का वो 250 साल पुराना रूप सामने आ गया। यह भेदभाव ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में बहुत पुराना है, लेकिन कभी सामने नहीं आता था, जो ब्रिटेन पूरी दुनिया को ज्ञान पेलता रहता है, जैसे...
1. फ्रीडम ऑफ स्पीच,
2. फ्रीडम ऑफ प्राइवेसी,
3. रिस्पेक्ट डेमोक्रेटिक प्रिन्सिपल।
ये सारी चीजें ताक पर रखकर रश्मि का, एक अकेली 24 साल की होनहार लड़की का, सोशल मीडिया के ऊपर डिजीटल चरित्र हनन किया गया। डिजीटल चरित्र लिंच किया गया। उसके सोशल मीडिया के पुराने पोस्ट को खंगाला गया। उसमें से जो अर्थ निकाल कर रश्मि के खिलाफ, वो एक   नस्लवादी नेता है, ऐसी प्रतिमा तैयार की गयी।
इतना ही नहीं, रश्मि की माँ का एक पुराना फोटो प्रभु श्रीराम के साथ देखकर उसकी माँ को भी इस प्रोपेगंडा में खींचा गया। कहा गया इन गोरों का फ्रीडम ऑफ प्राइवेसी, गया भाड़ में, ये गोरों पर लागू नहीं करता। यह लागू होता है भारतीय लोगों पर। इतना ही नहीं, रश्मि के ऊपर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इलेक्शन के पैसे लेने का आरोप तक लगाये गये। तेरा कुत्ता टोमी और मेरा कुत्ता ये है इनका असली चेहरा। जब इतने सारे आरोपों से परेशान होकर रश्मि ने सोचा कि एक अपोलोजी लेटर लिखकर माफी मांगूं, लेकिन किसी ने उसके अपोलोजी लेटर का सम्मान नहीं किया। आखिर में उनको जो चाहिये था, वो था प्रेसीडेंट इलेक्ट ऑक्सफोर्ड छात्र संघ अध्यक्ष के पद से इस्तीफा। वो देने के लिये एक 24 वर्षीया होनहार भारतीय के साथ ऐसा अपमानपूर्वक बर्ताव किया गया। वो भी विश्व के सो कोल्ड नंबर वन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में। ये रश्मि का अपमान नहीं है, आपका अपमान है। ये मेरा अपमान है, ये माँ भारती का अपमान है।
भारत में भी देखे कैसे दोगले लोग आंदोलनजीवी हैं, कहते हैं, मैं संविधान का पालन करता हूं, लेकिन संविधान के नियमों से बने कानून में नहीं मानता, यह वही जमात है। ये वही यूनिवर्सिटी है, जो ऐसे दोगले हाइपोक्रेट, ढोंगी नेता, विद्यार्थी बना रही है। इनसे भारत के युवाओं को सावधान राहना चाहिये।
क्या है इस विचारधारा का रूट कोज अनालिसिस, मूल कारण? वो है, अब्राहामिक पुस्तकों की पढ़ाई जैसे...
1. महिलायें मर्द से इऩ्फेरियर हैं, नीच हैं तो कोई मर्द, आदम किसी महिला इव से कैसे हार सकता है? अगर ऐसा हुआ है तो चलो मिलकर उस महिला को, इव को बदनाम करो। सारे अब्राहम आदमों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसे, ब्रेव, होनहार, वो भी सनातन धर्म से आई हुई महिला को सर्वोच्च पद से नीचे उतारो।
2. यह पृथ्वी और उसके संसाधन सिर्फ और सिर्फ अब्राहम लोगों के लिये बने हैं और पृथ्वी के सारे संसाधनों को अब्राहम के उपभोग में लाने का, अब्राहम लोगों का जन्म सिद्ध अधिकार है।
3. अब्राहम लोग सबसे ऊंचे नस्ल के हैं। बाकी इऩ्फेरियर हैं, नीच हैं।
मैं शपथ लेता हू, मैं अपने बेटे/बेटी को इस विश्व के सो कोल्ड नंबर वन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में किसी भी हालत में नहीं भेजूंगा। जय हिंद...! यह जानकारी श्री राहुल गोरवाडकर (मोबा. 9890144570) द्वारा दी गई है।

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