-श्री विपिन पवार
निदेशक (राजभाषा)
भारत सरकार, रेल मंत्रालय,
रेलवे बोर्ड, कक्ष क्रमांक 544, रेल भवन, रायसीना रोड,
नई दिल्ली-110001
पुस्तक समीक्षा
कोरोना काल में जीवन की आपाधापी के बीच जहां हमें अपने बारे में सोचने का समय निकालना दुष्कर प्रतीत हो रहा था, वहीं अपने अनुभवों, अपनी संवेदनाओं एवं अपनी गंभीर सोच को आकार देती वरिष्ठ राजभाषा कर्मी, चिंतक, कवि सत्येंद्र सिंह की कविताएं उम्मीदों के बीज बोती है। विषय वैविध्य के वातायन से मन-मस्तिष्क में प्रवेश करती सत्येंद्र सिंह की काव्य रचनाएं कुल 120 पृष्ठों में समाहित हैं।
काव्य संग्रह के प्रारंभ में ही आमुख है, जिससे सत्येंद्र सिंह के जीवन संघर्ष से पाठक रू-ब-रू होते हैं और उन्हें पता चलता है कि जितना तपता है उतना ही सोना खरा होता है। पितृविहीन जीवन की आंच में कवि बचपन से ही तपता रहा है और यही संघर्ष, यही तपन, यही खरापन इस संग्रह में यत्रतत्र सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। सत्येंद्र सिंह जिससे भी जुड़ते गए, उसे अपना बनाते चले, इसलिए आभार शीर्षक से प्रकाशित लेख में अनेक नामों का उल्लेख किया गया है।
संग्रह की प्रारंभिक 06 कविताएं शीर्षक कविताएं हैं- ‘फर्क पड़ता है।’ इन पर देशकाल का प्रभाव स्पष्टत: देखा जा सकता है। समाज में घट रही घटनाओं को जीवन का कटु सत्य मानकर कवि कहता है कि उसे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, लेकिन अंत में कवि का संवेदनशील मन चित्कार उठता है-
मुझे क्या फर्क पड़ता है...
जब सीमा पर
कोई जवान गोली खाता है
और
शहीद हो जाता है
मुझे फर्क प़ड़ता है तब
जब शहीद का आठ वर्षीय बालक
पिता के दाह संस्कार के बाद
रोता नहीं और
बिना आंसू गिराए बोलता है
मैं भी अपने पिता के समान
बहादुर बनूंगा
तब बहुत फर्क पड़ता है
बायरन के शब्दों़ में कहा जाए तो "Poetry is the white heat of emotions'' कविता भावनाओं का शीतल ताप है- इस संग्रह की कविताओं में दम तोड़ते मूल्यों, सामाजिक विघटन तथा तार-तार होते मानवीय संबंधों पर आक्रोश प्रकट किया गया है, लेकिन पूरी जिम्मेदारी, संयमता एवं शीतलता के साथ... भावनाओं के शीतल ताप की तरह। कसौटी, अस्तांचल, उम्मीद, अभिव्यक्ति, सांसों का सरगम, सोहम्, ज़रूरत, अनुभव, उमंग, अंधापन, कचोट, अभिव्यिक्ति के बिंब, तुम नहीं होते, स्वीकृति, मुश्किल इसी तेवर की कविताएं हैं।
कवि अपने जीवन भर के अनुभवों को वृध्द्त्व शीर्षक कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करता है, लेकिन साधक कवि को अभी अपनी मंजिल पर पहुंचना है, एक तलाश है जो अभी खत्म नहीं हुई है-
यह चाह मेरी रही पूरी अधूरी
न कोई मिला जो उससे मिला दे
साधन बना न कोई भी मुझसे
है कौन साधक जो उसको दिखा दे
हुनर शीर्षक कविता में जहां कवि का स्वाभिमान झलकता है वहीं आत्मबोध में व्यक्तिनिष्ठता की पराकाष्ठा के दर्शन होते हैं। आज की उपभोक्तावादी संस्कृति एवं गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में यदि व्यक्ति कवि की बात मान ले तो मुझे नहीं लगता कि समाज में कोई अव्यवस्था, वैमन्यसता या कटुता दिखाई पड़ेगी-
अपना कर्तव्य
बिना कहे किया जाए
स्वयं पर विश्वास किया जाए
औरो का विश्वास छला न जाए
संग्रह में समाहित कविताओं के विषय बहुआयामी हैं, कवि ने मानव जीवन के अनेक पहलुओं का बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन किया है, यहां यदि वर्षा, शिवाजी, शलभ, दीपक, रेल का दर्द, नारा, पगडंडी और सड़क, पोस्टमैन, फोटोग्राफर, विषदंत, अंधापन, पितृपक्ष, श्रीकृष्ण् जन्माष्टमी, बाढ़ त्रासदी, भारत है तो सैनिक, आतंकवाद, हंस, अतीत, तलाश, फासला, इंतजार, जिंदगी की गंध, मुश्किल, ऊंचाई, शिक्षक दिवस, बसंत एवं बंजारा भी है। लेखक के अनुभव का फलक अति विस्तृत है।
तुक, लय, छंद, राग, गीततत्व कविता की पहली शर्त है। इन दिनों नए कवि सीधे अतुकांत कविताएं लिखने लगे हैं। जिन्होंने पहले तुकांत कविताएं नहीं लिखी हैं उन्हें मैं कवि नहीं मानता। इस संग्रह की कविताएं कविता की पहली शर्त पर खरी उतरती हैं। इन कविताओं की भाषा सहज, सरल, सरस एवं सीधे दिल में उतरने वाली भाषा है। कहीं कोई बनावटीपन, कृत्रिमता एवं अस्वाभाविकता नहीं है। विषय वस्तु में पर्याप्त गुरुता एवं गंभीरता होने के बाद भी भाषा के इस सौष्ठव एवं लालित्य के कारण लगता है कि कड़वी गोली मीठी चाशनी में लपेटकर खिलाई गई है, जो इस संग्रह की सफलता का आधार है। जीने की आस जगाती, आश्वस्त करती, सकारात्मक कविताएं लिखकर कवि ने संवेदनाओं की ज़मीन पर उम्मीदों के बीज बोए हैं, उनका यह प्रयास निस्संदेह प्रशंसनीय है। मैं आश्वस्त हूं कि उम्मीदों की फसल से समाज का निश्चित रूप से हित ही होगा।
पुस्तक का आवरण अत्यंत आकर्षक एवं विषय-वस्तु के अनुरूप है। मुद्रण, कागज एवं प्रस्तुतिकरण मनमोहक है। हां ! प्रूफ की भूलों से बचा जा सकता था।
काव्य संग्रह -फ़र्क पड़ता है
प्रथम संस्करण-2020
मूल्य- 200 रुपए (हार्ड बाउंड)
पृष्ठ संख्या- 120
आवरण - प्रज्ञा भूपेन्द्र सिंह
प्रकाशक- जवाहर पुस्तकालय, सदर बाजार, मथुरा (उ.प्र.)
संपर्क- 09897000951
ई-मेल : jawahar.pustakalayagmail.com


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