मुख्य समाचार

6/recent/ticker-posts

संसद सत्र के बाद चाय की तस्वीरों से बदली कांग्रेस की सियासत और उभरी प्रियंका गांधी

स्वदेश कुमार ,लखनऊ
 वरिष्ठ पत्रकार 
मो- 9415010798

संसद के शीतकालीन सत्र के समापन के बाद लोकसभा अध्यक्ष की ओर से दी गई चाय की दावत आमतौर पर औपचारिक मानी जाती है, लेकिन इस बार यह आयोजन सियासी चर्चा का केंद्र बन गया। वजह बनीं कांग्रेस की नई सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा। चाय पर हुई इस मुलाकात की तस्वीरों में प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ पहली पंक्ति में बैठी नजर आईं। यही तस्वीरें कांग्रेस के भीतर बदलते समीकरणों और नेतृत्व की नई शैली की कहानी कहने लगीं। राजनीति में कई बार शब्दों से ज्यादा तस्वीरें बोलती हैं और इस मौके पर भी यही हुआ।प्रियंका गांधी का संसद में यह पहला सत्र था, लेकिन उनकी मौजूदगी ने साफ कर दिया कि वे खुद को सिर्फ एक नई सांसद तक सीमित नहीं रखने वाली हैं। जिस जगह आमतौर पर सत्ता पक्ष के शीर्ष नेता और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग दिखाई देते हैं, वहां प्रियंका का बैठना एक संकेत के तौर पर देखा गया। चाय के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से उनकी सहज बातचीत ने यह संदेश भी दिया कि वे संवाद से पीछे हटने वाली नेता नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक इस बातचीत में वायनाड से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। एक सांसद के तौर पर अपने क्षेत्र की बात सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंचाना उनके सक्रिय रवैये को दर्शाता है।

इस पूरे घटनाक्रम में राहुल गांधी की गैरमौजूदगी भी चर्चा में रही। राहुल गांधी पहले भी कई बार ऐसे अनौपचारिक कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखते रहे हैं। वे आमतौर पर संसद के अंदर तीखे भाषण और आक्रामक विरोध के जरिए अपनी राजनीति करते हैं। इसके उलट प्रियंका गांधी ने चाय की इस मुलाकात को एक अवसर की तरह लिया। कांग्रेस के भीतर यह तुलना अपने आप होने लगी कि पार्टी में दो अलग-अलग राजनीतिक शैलियां अब खुलकर सामने आ रही हैं।प्रियंका गांधी का तरीका संसद के अंदर भी देखने को मिला। उन्होंने अपने पहले ही सत्र में यह स्पष्ट कर दिया कि वे सिर्फ बयानबाजी तक सीमित नहीं रहेंगी। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से उनकी मुलाकात इसी का उदाहरण रही। वायनाड से जुड़े एक राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना पर चर्चा के लिए उन्होंने गडकरी से समय मांगा। गडकरी ने भी बिना देर किए उन्हें अपने कार्यालय आने का न्योता दिया। दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत सौहार्दपूर्ण रही और इसका संदेश दूर तक गया। विपक्ष में रहते हुए सत्ता पक्ष के वरिष्ठ मंत्री से इस तरह का संवाद आसान नहीं होता, लेकिन प्रियंका की विनम्रता और तैयारी ने यह रास्ता खोल दिया।

कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी का यह अंदाज पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है। वे सुबह तय समय से पहले संसद पहुंचती हैं और सदन की कार्यवाही को गंभीरता से समझने की कोशिश करती हैं। मीडिया में भी उनकी मौजूदगी लगातार बढ़ी है। संसद के गलियारों से लेकर सदन के भीतर तक, हर जगह उनकी सक्रियता पर नजर जा रही है। इससे यह धारणा बनने लगी है कि पार्टी में जिम्मेदारियों का संतुलन धीरे-धीरे बदल सकता है।पार्टी के अंदर एक और बड़ा बदलाव यह दिखा कि जिन नेताओं को लंबे समय से हाशिये पर माना जा रहा था, वे फिर से सक्रिय नजर आने लगे। मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे नेता संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बोलते दिखे। कांग्रेस के भीतर यह माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी ने महसूस किया है कि अनुभवी और प्रभावी वक्ताओं को नजरअंदाज करना पार्टी को नुकसान पहुंचाता है। उनकी पहल पर इन नेताओं को आगे लाया गया, जिससे कांग्रेस की आवाज ज्यादा मजबूत और संतुलित दिखने लगी।

प्रियंका गांधी की कार्यशैली में उनकी मां सोनिया गांधी की झलक भी कई नेताओं को दिखाई देती है। सबको साथ लेकर चलने की कोशिश, मतभेदों को शांत तरीके से सुलझाना और संगठन को प्राथमिकता देना उनकी राजनीति का हिस्सा बनता दिख रहा है। कांग्रेस लंबे समय से गुटबाजी और अंदरूनी खींचतान से जूझती रही है। ऐसे में प्रियंका की यह कोशिश पार्टी के लिए राहत की तरह देखी जा रही है। कई वरिष्ठ नेता अब अपनी शिकायतें और सुझाव लेकर सीधे प्रियंका के पास पहुंच रहे हैं, क्योंकि उन्हें वहां सुने जाने का भरोसा मिलता है।भारतीय जनता पार्टी के नजरिये से भी यह बदलाव अहम माना जा रहा है। राहुल गांधी के बयानों पर भाजपा के नेता अक्सर तीखी प्रतिक्रिया देते रहे हैं, लेकिन प्रियंका गांधी को लेकर उनकी भाषा अपेक्षाकृत संयमित रहती है। प्रियंका सवाल पूछती हैं और सरकार को घेरती भी हैं, लेकिन उनका तरीका ऐसा होता है कि जवाब देना जरूरी हो जाता है। यही वजह है कि उन्हें नजरअंदाज करना आसान नहीं है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चाय की इस मुलाकात ने कांग्रेस की राजनीति को एक नया मोड़ दिया है। यह सिर्फ एक तस्वीर नहीं थी, बल्कि एक संकेत था कि पार्टी संवाद और रणनीति की राजनीति की ओर बढ़ना चाहती है। राहुल गांधी पार्टी का वैचारिक चेहरा और बड़े आंदोलनों का नेतृत्व करते रह सकते हैं, जबकि प्रियंका गांधी संगठन और संसद के भीतर रोजमर्रा की राजनीति को संभाल सकती हैं। कांग्रेस के भीतर अब इस तरह की चर्चाएं खुलकर होने लगी हैं।संसद सत्र के दौरान प्रियंका गांधी की सक्रियता ने यह भी दिखाया कि वे विपक्ष में रहते हुए भी कामकाज के मुद्दों पर सरकार से बात करने में विश्वास रखती हैं। यह राजनीति का वह रूप है जिसमें विरोध के साथ संवाद भी चलता है। चाय पर हुई बातचीत ने इसी राजनीति की झलक दिखाई। जनता के लिए भी यह संदेश गया कि लोकतंत्र में मतभेदों के बावजूद बातचीत संभव है।इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस के भविष्य को लेकर नई उम्मीदें और नए सवाल दोनों खड़े कर दिए हैं। क्या पार्टी में दो पावर सेंटर उभर रहे हैं या यह जिम्मेदारियों का स्वाभाविक बंटवारा है, इसका जवाब आने वाला वक्त देगा। लेकिन इतना साफ है कि संसद के उस चाय कप में सिर्फ चाय नहीं थी, बल्कि कांग्रेस की बदलती सियासत की झलक भी थी। प्रियंका गांधी की मौजूदगी ने यह साबित कर दिया कि वे अब सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि सक्रिय राजनीतिक भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ