मुख्य समाचार

6/recent/ticker-posts

गणतंत्र दिवस और 26 जनवरी-राजपथ से कर्तव्य पथ पर

गणतंत्र दिवस भारत का एक अनूठा राष्ट्रीय पर्व है। यह पर्व प्रतिवर्ष 26 जनवरी को पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर महामहिम राष्ट्रपति देश को संबोधित करते हैं। भारत की राजधानी नई दिल्ली में इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक के राजमार्ग पर भव्य परेड निकाली जाती है। इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा मशाल जलाई जाती है और शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस राजपथ का नाम भारत सरकार द्वारा अब कर्तव्य पथ कर दिया गया है और, इस प्रकार हमने इस वर्ष का यह राष्ट्रीय पर्व परेड कर्तव्य पथ पर देखा।
गणतंत्र दिवस के रूप में 26 जनवरी का दिन तय किया गया था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक अधिवेशन में। पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में दिसंबर 1929 में लाहौर में यह अधिवेशन हुआ था, जिसमें प्रस्ताव पारित कर यह घोषणा की गई कि 26 जनवरी 1930 तक अंग्रेज सरकार भारत को स्वायत्त उपनिवेश का दर्जा दे और इसी दिन से पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा के साथ सक्रिय आंदोलन शुरू किया गया। 26 जनवरी 1930 से लेकर 1947 में स्वतंत्रता मिलने तक 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा और स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन अर्थात् 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद 6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा का गठन किया गया। इस संविधान सभा में 389 सदस्य थे परंतु बँटवारे के बाद 299 सदस्य ही रह गए। पूरे सदस्यों में 296 चुने हुए थे, 70 मनोनीत थे, 15 महिला सदस्य थीं, 26 अनुसूचित जाति से थे और 33 सदस्य अनुसूचित जनजाति से थे। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद थे और सच्चिदानंद सिन्हा अस्थायी अध्यक्ष थे। वी.एन. राव संवैधानिक सलाहकार थे। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने गए थे। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर थे। इस संविधान सभा के डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभभाई पटेल, अबुल कलाम, पुरुषोत्तमदास टंडन, सेठ गोविंददास आदि प्रमुख सदस्य थे। संविधान बनाने के लिए कुल 22 समितियां बनाई गईं, जिनमें प्रारूप समिति सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण समिति थी और इस समिति का कार्य संपूर्ण संविधान को लिखना अथवा निर्माण करना  था। इसी प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर थे और इसीलिए उन्हें संविधान निर्माता माना जाता है।    
संविधान सभा द्वारा 9 दिसंबर 1947 को संविधान बनाने का कार्य प्रारंभ किया गया। इस सभा की 114 बैठकें हुईं और 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में संविधान तैयार किया गया। 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान सभा द्वारा अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद को सुपुर्द किया गया, इसीलिए 26 नवंबर को भारत का संविधान दिवस माना जाता है। अनेक सुधारों और परिवर्तनों के बाद संविधान सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित प्रतियों पर हस्ताक्षर किए और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया और इसी दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में माना गया और इस तरह 26 जनवरी 1950 को अपने देश में भारतीय शासन और कानून व्यवस्था लागू हो गई। इस स्वतंत्रता को पाने में अपने देश की हजारों माताओं की गोद सूनी हो गई, हजारों बहनों-बेटियों की माँग का सिंदूर मिट गया। हमारे देश की आजादी किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं मिली। गोखले, मालवीय, महात्मा गाँधी आदि के आंदोलनों के अलावा इस आजादी की लड़ाई में बहुत सारे लोगों ने बलिदान दिया। भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद विस्मिल जिनके नाम हम जानते हैं, उनके अलावा अनेक ऐसे लोग शहीद हुए जिनके नाम हम नहीं जानते। सच तो यह है कि आजादी पाने का जुनून ही ऐसा था कि नाम और प्रसिद्धि पाने का तो उनके मन में विचार ही नहीं था। बस एक ही विचार- भारत की आजादी। इसीलिए इंडिया गेट पर बने शहीद स्मारक- अमर जवान ज्योति- अब वॉर मेमोरियल पर हर 26 जनवरी को प्रधानमंत्री, अनेक मंत्रियों, सेना के उच्च अधिकारियों के साथ मशाल जलाते हैं और ज्ञात अज्ञात शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
देश का पहला गणतंत्र दिवस राजपथ की जगह इरविन एम्फीथियेटर में मनाया गया। 1951 में इसका नाम बदलकर नैशनल स्टेडियम कर दिया गया। पहले गणतंत्र दिवस में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो हमारे मेहमान थे। इंडोनेशिया भी भारत के कुछ दिन पहले ही आजाद हुआ था। 26 जनवरी 1950 को पहली बार आजाद भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में बैठकर गणतंत्र दिवस के समारोह में पहुँचे थे। 26 जनवरी 1952 को बिना किसी विदेशी मेहमान के गणतंत्र दिवस मनाया गया। इसी साल पहली बार देश में परेड में ट्रैक्टर रैली निकाली गई। 1955 में पहली बार राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड का आयोजन किया गया। 1956 में पहली बार राजपथ में होने वाली परेड में हाथी और घोड़ों को शामिल किया गया। 1963 में पहली बार आर.एस.एस. की टुकड़ी गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हुई, जिसमें 3000 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। 1973 में पहली बार जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल का प्रदर्शन किया गया। 2008 में पहली बार प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने परेड की सलामी ली। 2016 में पहली बार विदेशी सैनिकों की टुकड़ी ने राजपथ परेड में भाग लिया। इस समारोह में फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांकोइस होलांदे मुख्य अतिथि थे और उन्हीं के साथ सैनिक टुकड़ी आई थी। 2021 में पहली बार राजपथ पर केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की झांकी दिखाई गई। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त करने के बाद लद्दाख जम्मू कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बना। 2022 में 73वां गणतंत्र दिवस कोरोना महामारी की तीसरी लहर के प्रभाव में पूरी सावधानी के साथ मनाया गया, राष्ट्रपति भवन को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया, लेजर शो का प्रदर्शन किया गया। महिला राफेल फाइटर जेट पायलट शिवांगी सिंह भारतीय वायुसेना का हिस्सा बनीं। पहली बार संस्कृति मंत्रालय  की गणतंत्र दिवस समारोह में भागीदारी हुई और वंदे भारतम् का आयोजन हुआ। कुल 9 मंत्रालयों और विभागों की भागेदारी हुई। इस तरह राजपथ पर गणतंत्र दिवस की यात्रा पूरी होती है। और अब 2023 में कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस समारोह का नया इतिहास लिखा गया तथा पहली बार अनुसूचित जनजाति की महिला राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा देश को संबोधित किया गया।

श्री सत्येंद्र सिंह, पुणे (महाराष्ट्र)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ