महाराष्ट्र पत्थरों का देश है। अंजन कांचन के पास चरवाहों का देश। भले ही इस मिट्टी में रत्न खनन न हो, लेकिन इस महाराष्ट्र में नररत्न का खनन निश्चित ही है। उनमें से एक चमकता हुआ रत्न हैं रयत शिक्षण संस्था के संस्थापक कर्मवीर भाऊराव पाटिल। शानदार कद-काठी, सीने तक लहराती सफेद दाढ़ी, प्रभावशाली व्यक्तित्व, पहाड़ी आवाज, महान-उत्कृष्ट वाक्पटुता एक ऋषितुल्य व्यक्तित्व।
100 वर्ष पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की आवश्यकता को पहचाननेवाले कर्मवीर भाऊराव पाटिल ग्रामीण शिक्षा आंदोलन के जनक हैं। कर्मवीर भाऊराव पूरे महाराष्ट्र में घूमे, गरीबों की झोपड़ी तक शिक्षा का संदेश पहुंचाने का काम किया। लोगों को शिक्षा का महत्व समझाकर उन्हें अपने कार्यों में शामिल किया। कर्मवीर जानते थे कि लोकतंत्र का मूल लोक शिक्षा है और सार्वजनिक शिक्षा समाज को विकास की ओर ले जाती है। एक तरफ बहुजनों और गरीबों के बीच शिक्षा का प्रसार करनेवाले कर्मवीर भाऊराव पाटिल और दूसरी तरफ अब संपूर्ण शिक्षा के सम्राट। उनके कार्यों के कारण उन्हें कर्मवीर की उपाधि दी गई। सीना ठोककर कर्मवीर भाऊराव पाटिल जो साहसपूर्वक कहते हैं कि एक बार जन्म देने वाले पिता का नाम बदल दिया जाएगा, लेकिन छात्रावास को दिया गया शिवाजी महाराज का नाम नहीं बदला जाएगा।
कोल्हापुर जिला राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज की विचारधारा एवं प्रगतिशील जिला। भाऊराव पायगोंडा पाटिल का जन्म 22 सितम्बर 1887 को इसी जिले के कुम्भोज गाँव में हुआ था। भाऊराव पाटिल के पिता पायगोंडा पाटिल एक क्लर्क थे। भाऊराव की प्राथमिक शिक्षा उनके पिता के स्थानान्तरण स्थान विटे, दहिवडी में हुई। उन्होंने 1902 से 1907 तक कोल्हापुर के राजापुर हाई स्कूल में पढ़ाई की। पढ़ाई से ज्यादा वे कुश्ती, तैराकी, मलखंब जैसे खेलों में निपुण थे। उन्होंने छठी कक्षा तक अंग्रेजी की पढ़ाई की थी। हालाँकि उन्होंने स्कूल में बहुत कुछ नहीं सीखा, लेकिन उन्होंने सामुदायिक स्कूल में वास्तविक अर्थों में सीखा। उन्होंने लोगों और स्थितियों को पढ़ा। तब की अंग्रेज़ी की छठी कक्षा यानी कि अब की दसवीं कक्षा जिनके पास शिक्षा है वो कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने ज्ञान की गंगा घर-घर पहुंचाई। कई विश्वविद्यालयों को शर्मसार होना पड़े, ऐसी डिग्रियां और सम्मान उन्होंने अपने काम से अर्जित किये। 4 अक्टूबर 1919 को भाऊराव ने रयत शिक्षण संस्था की स्थापना की। आज रयत शिक्षण संस्था का वटवृक्ष महाराष्ट्र के 14 जिलों और कर्नाटक के कुछ जिलों में फैल चुका है। रयत शिक्षण संस्था को एशिया खंड की सबसे बड़ी शैक्षणिक संस्था के रूप में जाना जाता है। संस्था को स्वायत्त विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है।
जिस किसान के पास अपना खेत है, वह रयत है और रयतों को शिक्षा प्रदान करनेवाली संस्था के रूप में संस्था का नाम रयत शिक्षण संस्था दिया। शैक्षिक कार्य का वटवृक्ष परिश्रम, स्वावलंबन और समानता के तीन सिद्धांतों पर आधारित है। संस्था के इस कार्य में कर्मवीर भाऊराव पाटिल की पत्नी लक्ष्मीबाई ने उनका बहुमूल्य सहयोग दिया। ‘स्वावलंबी शिक्षण हेच आमचे ब्रीद’ यह रयत शिक्षण संस्था का आदर्श वाक्य है। कर्मवीर भाऊराव पाटिल सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा फुले, राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज और महात्मा गांधी के कार्यों और विचारों से प्रभावित थे।
1910 से कर्मवीर भाऊराव ने खादी का व्रत लिया और अंत तक उसका पालन किया। पुणे विश्वविद्यालय यानी वर्तमान सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय ने भाऊराव को शैक्षणिक और सामाजिक कार्यों के लिए डी.लिट की उपाधि प्रदान करके उन्हें सम्मानित किया गया। जनता ने उन्हें कर्मवीर की उपाधि दी। कर्मवीर भाऊराव को 26 जनवरी 1959 को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। तब भाऊराव ने कहा था, जनता जनार्दन ने मुझे जो कर्मवीर की उपाधि दी है, वह श्रेष्ठ है। वह अपने नाम के नीचे रयतसेवक की उपाधि का प्रयोग करता थे। मैं नहीं चाहता कि एक व्यक्ति मुझे एक लाख रुपये दे, मैं चाहता हूं कि दस लाख लोग मुझे एक रुपये दें। कर्मवीर भाऊराव पाटिल ऐसी ही दृष्टि और नये दृष्टिकोण वाले दूरदर्शी विचारक हैं।
9 मई 1959 को कर्मवीर भाऊराव पाटिल का निधन हो गया। सौ से डेढ़ सौ वर्षों में भाऊराव जैसा शिक्षा का कोई महर्षि पैदा नहीं हुआ। कर्मवीर के बारे में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कहते हैं, कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने महाराष्ट्र के शिक्षा क्षेत्र में एक महान क्रांति की। महात्मा गांधी ने सातारा में भाऊराव पाटिल के छात्रावास का दौरा किया था। उन्होंने छात्रावास को देखकर कहा था, भाऊराव, जो मैं साबरमती आश्रम में नहीं कर सका, आपने यहां चमत्कार कर दिखाया। पूर्व उपप्रधानमंत्री दिवंगत यशवंतराव चव्हाण कहते हैं कि कर्मवीर ने शिक्षा का एक नया चरण शुरू किया और आधुनिक महाराष्ट्र का निर्माण किया।
आधुनिक शिक्षा के महर्षि, ज्ञान भगीरथ कर्मवीर भाऊराव पाटिल की 136वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन!
100 वर्ष पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की आवश्यकता को पहचाननेवाले कर्मवीर भाऊराव पाटिल ग्रामीण शिक्षा आंदोलन के जनक हैं। कर्मवीर भाऊराव पूरे महाराष्ट्र में घूमे, गरीबों की झोपड़ी तक शिक्षा का संदेश पहुंचाने का काम किया। लोगों को शिक्षा का महत्व समझाकर उन्हें अपने कार्यों में शामिल किया। कर्मवीर जानते थे कि लोकतंत्र का मूल लोक शिक्षा है और सार्वजनिक शिक्षा समाज को विकास की ओर ले जाती है। एक तरफ बहुजनों और गरीबों के बीच शिक्षा का प्रसार करनेवाले कर्मवीर भाऊराव पाटिल और दूसरी तरफ अब संपूर्ण शिक्षा के सम्राट। उनके कार्यों के कारण उन्हें कर्मवीर की उपाधि दी गई। सीना ठोककर कर्मवीर भाऊराव पाटिल जो साहसपूर्वक कहते हैं कि एक बार जन्म देने वाले पिता का नाम बदल दिया जाएगा, लेकिन छात्रावास को दिया गया शिवाजी महाराज का नाम नहीं बदला जाएगा।
कोल्हापुर जिला राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज की विचारधारा एवं प्रगतिशील जिला। भाऊराव पायगोंडा पाटिल का जन्म 22 सितम्बर 1887 को इसी जिले के कुम्भोज गाँव में हुआ था। भाऊराव पाटिल के पिता पायगोंडा पाटिल एक क्लर्क थे। भाऊराव की प्राथमिक शिक्षा उनके पिता के स्थानान्तरण स्थान विटे, दहिवडी में हुई। उन्होंने 1902 से 1907 तक कोल्हापुर के राजापुर हाई स्कूल में पढ़ाई की। पढ़ाई से ज्यादा वे कुश्ती, तैराकी, मलखंब जैसे खेलों में निपुण थे। उन्होंने छठी कक्षा तक अंग्रेजी की पढ़ाई की थी। हालाँकि उन्होंने स्कूल में बहुत कुछ नहीं सीखा, लेकिन उन्होंने सामुदायिक स्कूल में वास्तविक अर्थों में सीखा। उन्होंने लोगों और स्थितियों को पढ़ा। तब की अंग्रेज़ी की छठी कक्षा यानी कि अब की दसवीं कक्षा जिनके पास शिक्षा है वो कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने ज्ञान की गंगा घर-घर पहुंचाई। कई विश्वविद्यालयों को शर्मसार होना पड़े, ऐसी डिग्रियां और सम्मान उन्होंने अपने काम से अर्जित किये। 4 अक्टूबर 1919 को भाऊराव ने रयत शिक्षण संस्था की स्थापना की। आज रयत शिक्षण संस्था का वटवृक्ष महाराष्ट्र के 14 जिलों और कर्नाटक के कुछ जिलों में फैल चुका है। रयत शिक्षण संस्था को एशिया खंड की सबसे बड़ी शैक्षणिक संस्था के रूप में जाना जाता है। संस्था को स्वायत्त विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है।
जिस किसान के पास अपना खेत है, वह रयत है और रयतों को शिक्षा प्रदान करनेवाली संस्था के रूप में संस्था का नाम रयत शिक्षण संस्था दिया। शैक्षिक कार्य का वटवृक्ष परिश्रम, स्वावलंबन और समानता के तीन सिद्धांतों पर आधारित है। संस्था के इस कार्य में कर्मवीर भाऊराव पाटिल की पत्नी लक्ष्मीबाई ने उनका बहुमूल्य सहयोग दिया। ‘स्वावलंबी शिक्षण हेच आमचे ब्रीद’ यह रयत शिक्षण संस्था का आदर्श वाक्य है। कर्मवीर भाऊराव पाटिल सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा फुले, राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज और महात्मा गांधी के कार्यों और विचारों से प्रभावित थे।
1910 से कर्मवीर भाऊराव ने खादी का व्रत लिया और अंत तक उसका पालन किया। पुणे विश्वविद्यालय यानी वर्तमान सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय ने भाऊराव को शैक्षणिक और सामाजिक कार्यों के लिए डी.लिट की उपाधि प्रदान करके उन्हें सम्मानित किया गया। जनता ने उन्हें कर्मवीर की उपाधि दी। कर्मवीर भाऊराव को 26 जनवरी 1959 को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। तब भाऊराव ने कहा था, जनता जनार्दन ने मुझे जो कर्मवीर की उपाधि दी है, वह श्रेष्ठ है। वह अपने नाम के नीचे रयतसेवक की उपाधि का प्रयोग करता थे। मैं नहीं चाहता कि एक व्यक्ति मुझे एक लाख रुपये दे, मैं चाहता हूं कि दस लाख लोग मुझे एक रुपये दें। कर्मवीर भाऊराव पाटिल ऐसी ही दृष्टि और नये दृष्टिकोण वाले दूरदर्शी विचारक हैं।
9 मई 1959 को कर्मवीर भाऊराव पाटिल का निधन हो गया। सौ से डेढ़ सौ वर्षों में भाऊराव जैसा शिक्षा का कोई महर्षि पैदा नहीं हुआ। कर्मवीर के बारे में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कहते हैं, कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने महाराष्ट्र के शिक्षा क्षेत्र में एक महान क्रांति की। महात्मा गांधी ने सातारा में भाऊराव पाटिल के छात्रावास का दौरा किया था। उन्होंने छात्रावास को देखकर कहा था, भाऊराव, जो मैं साबरमती आश्रम में नहीं कर सका, आपने यहां चमत्कार कर दिखाया। पूर्व उपप्रधानमंत्री दिवंगत यशवंतराव चव्हाण कहते हैं कि कर्मवीर ने शिक्षा का एक नया चरण शुरू किया और आधुनिक महाराष्ट्र का निर्माण किया।
आधुनिक शिक्षा के महर्षि, ज्ञान भगीरथ कर्मवीर भाऊराव पाटिल की 136वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन!


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