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ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ फार्मसी महाविद्यालय में "प्रेरणा व दिशादर्शन" कार्यक्रम उत्साह से मनाया गया - प्राचार्य डॉ.संजय चौधरी

कोंढवा, दिसंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
कल्याणराव जाधव शैक्षणिक संकुल के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ फार्मसी महाविद्यालय में हाल ही में प्रवेश लेनेवाले प्रथम वर्ष डी.फार्मसी, बी. फार्मसी व एम. फार्मसी के छात्रों का मनोबल व आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए महाविद्यालय की ओर से प्रेरणा व दिशादर्शन कार्यक्रम उत्साह के साथ मनाया गया।

संस्थान के संस्थापक श्री कल्याणराव जाधव, महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.संजय चौधरी, प्रमुख अतिथी मायोज़ा हेल्थ प्राइवेट लिमिटेड की एम.डी डॉ. यास्मिन शेख, सी.क्यू.ए.एल्केम लैब प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजर और शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारी व नवीन प्रवेशित विद्यार्थी कार्यक्रम में शामिल हुए थे। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती पूजा से हुई। उसके पश्चात विभाग के अनुसार परिचय व प्रस्तुतीकरण किया गया।इसके साथ ही उत्तीर्ण हुए छात्रों को भी सम्मानित किया गया।
प्राचार्य डॉ.संजय चौधरी ने वर्ष 2019 से कॉलेज की तरक्की के बढ़ते आलेख के बारे में बताया।अलग-अलग फार्मेसी उद्योग समूह के बारे में जानकारी दी।भारत की दवाइयों का मार्केट व फार्मासिस्ट के रूप में वहां नौकरी व उद्योग के लिए अवसर उपलब्ध होते हैं, इस अवसर का लाभ किस तरह लेना चाहिए। इस संबंध में मार्गदर्शन किया।

डॉ.यास्मिन शेख व श्री. रवींद्र सावंत ने उपस्थित छात्रों को मार्गदर्शन करते हुए निरंतर उत्साह के साथ लगन और दृढ़ता से सिर्फ़ पढ़ाई में ही नहीं बल्कि हम कॉलेज में दूसरी करिकुलर व एक्स्ट्रा करिकुलर में विकास किस तरह कर सकते हैं, ताकि फार्मेसी के क्षेत्र में सबसे अच्छा शानदार प्रदर्शन किस प्रकार करना है। साथ ही फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री और उसका कार्यभार के बारे में जानकारी दी गई।

फार्मेसी पाठ्यक्रम पूरा करते समय किस मुख्य चीज़ों पर सबसे पहले ध्यान देना चाहिए। साथ ही, शिक्षा का मतलब न केवल सिर्फ स्नातक  हासिल करना बल्कि इसे समाज-उन्मुख और देश-उन्मुख और सेवा प्रदान - उन्मुख बनाना भी होना चाहिए।यह प्रतिपादन संस्थान के संस्थापक श्री. कल्याणराव जाधव ने व्यक्त किया।

संस्था के सचिव श्री. समीर कला, छात्र विकास और कल्याण के अधिष्ठाता डॉ. हेमंत देशमुख ने छात्रों को मार्गदर्शन करके भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी।

कार्यक्रम का संयोजन प्रा.अरीज सिद्दिकी व  पायल बोरावके ने किया। इसके अलावा, सभी विभाग प्रमुख और अन्य प्राध्यापकों का भी सहयोग मिला।

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