मुंबई, सितंबर (महासंवाद)
राज्य में इस वर्ष औसत से कम बारिश के कारण पैदा हुई अभाव जैसी स्थिति पर काबू पाने के लिए पिछले महीने हुई फसल निरीक्षण समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने चारे की कमी पर उपाय करने के निर्देश दिये गये थे। इसके अनुसार, कृषि और पशुपालन, डेयरी विकास और मत्स्य पालन विभाग के माध्यम से सूखे की स्थिति में जलाशयों और झीलों के तहत भूमि का उपयोग केवल चारा फसलों के लिए मंजूरी देने के लिए एक सरकारी निर्णय जारी किया गया है।
जल संसाधन के साथ-साथ मृद एवं जल संरक्षण विभाग की जलाशय भंडारण का वाष्पीकरण के कारण कम होने से जलमग्न क्षेत्रों में भूमि उजागर/ खुली हो जायेगी।
इस भूमि की नमी और आपातकालीन स्थिति में जलाशयों के माध्यम से उपलब्ध सिंचाई व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए ऐसी भूमि पर बड़ी मात्रा में चारा फसलों की बुआई करके चारे का उत्पादन संभव है। अतः जल संसाधन के साथ-साथ मृद एवं जल संरक्षण विभाग के अंतर्गत प्रमुख परियोजनाएँ/मध्यम परियोजनाएँ/लघु परियोजनाएँ जलाशय में गाद भूमि को केवल चारा फसलों की खेती के अंतर्गत लाने के लिए गाद भूमि आवंटन प्रक्रिया का पालन करते हुए इस भूमि का आवंटन केवल चारा फसलों के लिए स्वीकृत किया गया है।
गाद भूमि पर चारा उत्पादन कर चारे की कमी को दूर करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है। गाद भूमि पर चारा उत्पादन कर चारे की कमी को दूर करने हेतु लाभार्थियों के चयन, समन्वय एवं नियंत्रण हेतु एक समिति का गठन किया गया है। इसके मुताबिक हर जिले में जिलाधिकारी इस समिति के अध्यक्ष होंगे। जिला अधीक्षक कृषि अधिकारी, सिंचाई अधीक्षक अभियंता, मृद एवं जल संरक्षण कार्यकारी अभियंता, जिला पशुपालन पदाधिकारी इस समिति के सदस्य होंगे तो जिला पशुपालन उपायुक्त इस समिति के सदस्य सचिव होंगे।
राज्य में औसत से कम वर्षा होने के कारण कभी-कभी अभाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भविष्य में वर्षा कम होने या पर्याप्त वर्षा न होने से मिट्टी की नमी कम हो जायेगी, इसलिए आने वाले वर्षों में चारे की कमी की स्थिति को दूर करने और उपलब्ध नमी का लाभ उठाने के लिए चारा फसलें लगाने का यह सही समय है। मूरघास (पोल्ट्री) घास एक प्रकार का चारा है जो अन्य चारे की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है और यह देखा गया है कि मूरघास (पोल्ट्री) के उपयोग से पशुओं की उत्पादकता और प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है। इसके अलावा मूरघास (पोल्ट्री) को वायुरोधी स्थिति में यदि भंडारण किया गया तो इसका प्रयोग बहुत समय के लिए होता है और बहुत समय बाद भी हरे चारे की उपलब्धता दूध उत्पादन को प्रभावित किए बिना चारे की कमी को प्रभावी ढंग से दूर कर देगी। अतः वितरित की जानेवाली गाद भूमि में मक्का और ज्वार जैसी मूरघास के लिए उपयुक्त चारेवाली फसलों की खेती करनी चाहिए।
चारा बीज वितरण के लिए केंद्र/राज्य सरकार की योजनाओं के द्वारा उपलब्ध होनेवाली धनराशि साथ ही जिला वार्षिक योजना के तहत उर्वरक एवं पशु आहार कार्यक्रम किसान के खेत पर उर्वरक उत्पादन लेने हेतु इस बीज वितरण योजना के तहत मक्का एवं ज्वार इस उर्वरक के बीज उपलब्ध कराये जायेंगे।
भविष्य में अभाव के समय में चारे की कमी नहीं होनी चाहिए इसके लिए सभी जिलाधिकारी को जलस्रोतों एवं चारा उत्पादन स्रोतों की मैपिंग कर तकनीकी रूप से सुदृढ़ तरीके से चारा उत्पादन की योजना बनानी चाहिए।
साथ ही, जिलावार/परियोजनावार उपलब्ध गाद क्षेत्र, चारा फसल के तहत लिया गया क्षेत्र, चारे से अनुमानित आय के आंकड़े पशुपालन उपायुक्त द्वारा पशुपालन आयुक्त को प्रदान की जानी चाहिए।
राज्य में इस वर्ष औसत से कम बारिश के कारण पैदा हुई अभाव जैसी स्थिति पर काबू पाने के लिए पिछले महीने हुई फसल निरीक्षण समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने चारे की कमी पर उपाय करने के निर्देश दिये गये थे। इसके अनुसार, कृषि और पशुपालन, डेयरी विकास और मत्स्य पालन विभाग के माध्यम से सूखे की स्थिति में जलाशयों और झीलों के तहत भूमि का उपयोग केवल चारा फसलों के लिए मंजूरी देने के लिए एक सरकारी निर्णय जारी किया गया है।
जल संसाधन के साथ-साथ मृद एवं जल संरक्षण विभाग की जलाशय भंडारण का वाष्पीकरण के कारण कम होने से जलमग्न क्षेत्रों में भूमि उजागर/ खुली हो जायेगी।
इस भूमि की नमी और आपातकालीन स्थिति में जलाशयों के माध्यम से उपलब्ध सिंचाई व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए ऐसी भूमि पर बड़ी मात्रा में चारा फसलों की बुआई करके चारे का उत्पादन संभव है। अतः जल संसाधन के साथ-साथ मृद एवं जल संरक्षण विभाग के अंतर्गत प्रमुख परियोजनाएँ/मध्यम परियोजनाएँ/लघु परियोजनाएँ जलाशय में गाद भूमि को केवल चारा फसलों की खेती के अंतर्गत लाने के लिए गाद भूमि आवंटन प्रक्रिया का पालन करते हुए इस भूमि का आवंटन केवल चारा फसलों के लिए स्वीकृत किया गया है।
गाद भूमि पर चारा उत्पादन कर चारे की कमी को दूर करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है। गाद भूमि पर चारा उत्पादन कर चारे की कमी को दूर करने हेतु लाभार्थियों के चयन, समन्वय एवं नियंत्रण हेतु एक समिति का गठन किया गया है। इसके मुताबिक हर जिले में जिलाधिकारी इस समिति के अध्यक्ष होंगे। जिला अधीक्षक कृषि अधिकारी, सिंचाई अधीक्षक अभियंता, मृद एवं जल संरक्षण कार्यकारी अभियंता, जिला पशुपालन पदाधिकारी इस समिति के सदस्य होंगे तो जिला पशुपालन उपायुक्त इस समिति के सदस्य सचिव होंगे।
राज्य में औसत से कम वर्षा होने के कारण कभी-कभी अभाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भविष्य में वर्षा कम होने या पर्याप्त वर्षा न होने से मिट्टी की नमी कम हो जायेगी, इसलिए आने वाले वर्षों में चारे की कमी की स्थिति को दूर करने और उपलब्ध नमी का लाभ उठाने के लिए चारा फसलें लगाने का यह सही समय है। मूरघास (पोल्ट्री) घास एक प्रकार का चारा है जो अन्य चारे की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है और यह देखा गया है कि मूरघास (पोल्ट्री) के उपयोग से पशुओं की उत्पादकता और प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है। इसके अलावा मूरघास (पोल्ट्री) को वायुरोधी स्थिति में यदि भंडारण किया गया तो इसका प्रयोग बहुत समय के लिए होता है और बहुत समय बाद भी हरे चारे की उपलब्धता दूध उत्पादन को प्रभावित किए बिना चारे की कमी को प्रभावी ढंग से दूर कर देगी। अतः वितरित की जानेवाली गाद भूमि में मक्का और ज्वार जैसी मूरघास के लिए उपयुक्त चारेवाली फसलों की खेती करनी चाहिए।
चारा बीज वितरण के लिए केंद्र/राज्य सरकार की योजनाओं के द्वारा उपलब्ध होनेवाली धनराशि साथ ही जिला वार्षिक योजना के तहत उर्वरक एवं पशु आहार कार्यक्रम किसान के खेत पर उर्वरक उत्पादन लेने हेतु इस बीज वितरण योजना के तहत मक्का एवं ज्वार इस उर्वरक के बीज उपलब्ध कराये जायेंगे।
भविष्य में अभाव के समय में चारे की कमी नहीं होनी चाहिए इसके लिए सभी जिलाधिकारी को जलस्रोतों एवं चारा उत्पादन स्रोतों की मैपिंग कर तकनीकी रूप से सुदृढ़ तरीके से चारा उत्पादन की योजना बनानी चाहिए।
साथ ही, जिलावार/परियोजनावार उपलब्ध गाद क्षेत्र, चारा फसल के तहत लिया गया क्षेत्र, चारे से अनुमानित आय के आंकड़े पशुपालन उपायुक्त द्वारा पशुपालन आयुक्त को प्रदान की जानी चाहिए।

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